1962 war : आज हम आपको दुर्भाग्यवश भारत के पहले प्रधानमन्त्री रहे जवाहरलाल नेहरु की चीन को लेकर कुछ नीतियों के बारे में बताने जा रहें है जिसने चीन को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया था | आप भी इसे पड़ने के बाद आमन्त्रण ही कहेंगे |
- जब चीन में कमुनिस्ट क्रांति चल रही थी उसके 3 महीने बाद ही 30 दिसम्बर 1949 को भारत द्वारा चीनी कमुनिस्ट सरकार को मान्यता दे दी गई थी | उस समय नेहरु ने लोकसभा में कहा था कि यह करोड़ो लोगों के जीवन में आमूल क्रांति थी , जिसके बाद एक लोकप्रिय सरकार की स्थापना हुई |
- 1 जनवरी 1950 को चीन ने तिब्बत पर अपना अधिकार बताया और अक्तूबर 1950 में तिब्बत पर हमला करके उसे अपने कब्जे में ले लिया गया | दलाईलामा ने भारत से सैन्य सहायता की मांग की लेकिन कोई सहायता नहीं भेजी है |
- इसके बाद 29 अप्रैल 1954 को भारत को चीन के बीच एक संधि होती है जिसमें भारत ने तिब्बत पर चीन का अधिकार स्वीकार कर लिया था तथा उसे चीन का एक प्रान्त मान लिया गया | 1962 war
- नेहरु ने एक बार फिर से ऐसा ही किया | इस बार नेहरु ने बांगडुग सम्मेलन के बाद फारमोसा , क्वेमोई तथ मात्सू द्वीपों पर भी चीन के अधिकारों को मान्य दे दी | फिर से नेहरु ने तिब्बत की तरह चीन का इन क्षेत्रों पर भी अधिकार मान लिया |
- 1959 को तिब्बत की राजधानी ल्हासा में विद्रोह हो गया और चीन ने इस विद्रोह को दबा दिया | इसके कारण दलाईलामा को अपनें हजारों लोगो के साथ भारत में शरण लेनी पड़ी | भारत की जनता ने चीनी दूतावास के बाहर भारी विरोध किया | नेहरु ने चीन का विरोध तो नहीं किया लेकिन भारत के लोगों की आवाज़ को दबाना शूरू कर दिया | नेहरु ने प्रेस पर अघोषित सेंसरशिप लागू करने का प्रयास किया तथा प्रेस पर दबाव बनाया गया कि वे भारत में तिब्बत के समर्थन में हो रहे प्रदर्शन को न छापें |
- नेहरु को एक बार चीन में भारत के राजदूत का पत्र मिला जिसमें लिखा था कि पीटीआई का एक वरिष्ट पत्रकार हांगकांग से भारत में खबर भेज रहा है जो चीन के हित में नहीं है | इसके बाद पीटीई के प्रमुख के एस रामचन्द्रन को कहा कि इस बात को मंजूर नहीं किया जायेगा और यह खबर न छापी जाये | इसके बाद उस पत्रकार को भी निकाल दिया गया था |
- संसद में चीन के विरुद्ध आवाज़ उठी तो उसे नेहरु ने कहा कि हमारे लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम महान देश चीन के साथ मित्रता के सबंध बनाएं रखें | 1962 war
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- भारत और चीन के बीच 2 हजार किलोमीटर को सीमा रेखा है | 1956-57 के बीच ही चीन ने भारत की सीमाओं पर घुसपैठ करना शुरू कर दिया था | इसकी जानकारी भारतीय सेना द्वारा नेहरु को दी गई थी लेकिन नेहरु ने इस और ध्यान नहीं दिया | 1958 में भारत कीण सेना गश्त लगा रही थी लेकिन चीन उस टुकड़ी को बंदी बना लिया था|
- अगस्त 1958 में चीन ने अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश कर लिया था | नेहरु को इसके बारें में बताया गया था लेकिन उसने लोकसभा में कहा कि मैं इस स्थिति को भयावह रूप में नहीं देखता हूँ , साफ़ तौर पर स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि हमें बिना घबराहट और शोर मचाये स्थिति का सामना करना है | 1962 war
- 8 सितम्बर 1959 को चीनी प्रधानमन्त्री ने औपचारिक रूप से भारत के 50 हजार वर्गमील क्षेत्र पर अपना अधिकार बता दिया | अक्तूबर 1959 को चीनी सेना ने भारत में प्रवेश कर भारतीय सेना के जवानों की हत्या कर दी थी और 10 जवानों को बंदी बना लिया |
- इसके बाद चीन ने भारत पर हमला किया और कई क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया | लेकिन हैरानी की बात यह थी कि हमले के बाद भी भारत ने चीनी दूतावास को बंद नहीं किया |
- चीन के भारत पर हमला करने के बाद भी नेहरु सयुंक्त राष्ट्र में चीन के प्रतिनिधित्व पर उसका साथ देता रहा |
- एक अन्य कारण यह था की नेहरु ने कभी भी भारत की सुरक्षा के लिए हथयारों को बनाने का समर्थन नहीं किया , उसका मानना था कि भारत को तो सेना की भी जरूरत नहीं है | 1962 war
इन सभी कारणों से अगर हम चीन द्वारा भारत पर हुए हमले को नेहरु का आमन्त्रण ण कहें तो क्या कहें |
Source : पुस्तक : कहानी कम्युनिस्टों की , लेखक : संदीप देव