Tough Punishments of Cellular Jail : कैदियों को नारियल का रेशा कूटकर निकालने का काम दिया गया। इस काम को करते हुए कैदी आपस में बोलते भी रहते थे। एक बार कोलकाता से कोई अधिकारी इस जेल में देखने आया। उसे कैदियों का आपस में बोलना भी सहन नहीं हुआ।
आदेश दिए गए कि कैदियों से अधिक कठोरता से काम लिया जाए। अतः उन्हें कोलू में जोता जाने लगा।
आपस में बातें करने पर 1 सप्ताह तक हथकड़ी डाल दी जाती थी।
काला पानी कि सजाएं
- गोलू में जोतने के लिए राजनीतिक कैदियों के स्वास्थ्य को किसी प्रकार की चिंता नहीं की जाती थी।
- कोठरी में बंद होकर कैदी को लूटते भोजन के समय उन्हें खोला जाता।
- इस समय भी उन्हें उनके हाथ नहीं धोने दिया जाता था |
- हाथ धोने पर अथवा क्षण भर के लिए धूप में खड़े हो जाने पर नंबरदार मां बहन की भद्दी गालियां देने लगता।
- पानी के पीने के पानी के लिए भी उसकी मन्नते करनी पड़ती दो से तीसरा कटोरा पानी पीने को नहीं मिलता।
- नहाना वर्षा के अतिरिक्त हो ही नहीं पाता था।
- खाना मिलते ही , कोठरी में पुणे बंद कर दिया जाता। उन्हें खाया या नहीं इसकी कोई परवाह नहीं थी।
- कोटडी में जाते ही बाहर से आवाज आने लगती बैठो मत शाम को तेल पूरा हो नहीं तो पिट जाओगे
- बुखार 102 डिग्री से कम होने पर कोई छूट नहीं देना ।
- सिर दर्द, पेट, दर्द आदि रोग जो दिखाई नहीं देते, उनकी शिकायत करने पर तो कैदी की दुर्गति ही कर दी जाती
काला पानी का नियम ब्राह्मण के जनेऊ ने बदलवा दिया था : पं राम रखा बाली
पठान सिपाही का हिन्दू डॉक्टर को धमकाना |
सावरकर अपनी किताब में लिखने हैं ” डॉक्टर हिन्दू था , बारी उसके साथ भी दुर्व्यवहार करता और कहता ” देखो डॉक्टर तुम हिंदू हो !यह राजनीतिक कैदी भी हिंदू है। इनकी मीठी बातों में कहीं तुम खटाई में ना पड़ जाओ। हमें ऐसा डर है।कोई जाकर शिकायत कर दें कि तुम इनसे बोलते रहते हो तो तुम्हें लेने के देने पड़ जाएंगे। इसलिए संभल जाओ समझे नौकरी करो। माना कि तुम डॉक्टरी पढ़ाई हो तुम भी गुणवान हैं परंतु हम भी गुणवान हैं। कौन बीमार है, कौन नहीं, मैं देखते ही पढ़ लेता हूं।” Tough Punishments of Cellular Jail
गणेश सावरकर जी का स्वास्थ बिगड़ना
वीर सावरकर के बड़े भाई श्री गणेशा सावरकर भी इस जेल में थे एक बार उनके माथे में भयंकर दर्द था।
डॉक्टर ने अस्पताल ले जाने की अनुमति दे दी उन्हें अस्पताल में ले जाने की समस्त कार्रवाई भी हो चुकी थी।
उन्हें अस्पताल ले जाया जा रहा था। इतने में पठान बारी ( सिपाही ) पहुंच गया और आते ही बिगड़ उठा।
आते ही ही बोला “मुझसे क्यों नहीं पूछा, वह डॉक्टर कौन होता है। इसे ले जाओ। इसे वापस काम में लगाओ।
मैं समझा लूंगा। डॉक्टर क मुझसे पूछे इसे कोठड़ी से बाहर क्यों निकाला ? और साले जेलर हूँ मैं !!
“डॉक्टर परिणाम स्वरुप रोगी को अस्पताल नहीं ले जाया जा सके। भोजन वस्त्र मारपीट, गाली-गलौज यह सब तो था ही।
अतिरिक्त यातनाएं
- इसके अतिरिक्त कैदियों को उनकी प्राकृतिक आवश्यकता ओं की भी स्वतंत्रता नहीं थी।
- प्रकाश! और दोपहर क्या तरीक कैदी अपनी इन अनिवार्य क्रियाओं को भी नहीं कर सकते थे।
- रात्रि में इन क्रियाओं की आवश्यकता होने पर प्रातः सफाई कर्मचारी का सामना करना पड़ता था और पेशी लग जाती थी।
- हथकड़ी लग जाती थी और 8 घंटे खड़ा रहना पड़ता था।
- अन्य अपराधी कह दी तो यदा-कदा दीवार पर ही पेशाब कर लेते थे, किंतु राजनीतिक कैदी ऐसा भी नहीं कर पाते।
मदन लाल धींगरा कि इंग्लैंड में कर्जन को मारने के लिए सावरकर ने मदद कि थी
हिन्दू ग्रंथो पे प्रतिबन्ध
पुस्तकें पढ़ना और लेना-देना भी अपराध माना जाता था। Tough Punishments of Cellular Jail
पुस्तकें पढ़ने के विषय में बारी का दृष्टिकोण एकदम महतवपूर्ण था।
बारी प्रातः कहता था ” नानसेंस किताबे मैं नहीं देना चाहता। इन्हें किताबों को पढ़कर यह लोग हत्यारे हो जाते हैं और यह योग वयोग फिलोसफी की पुस्तकें बेकार है।
किंतु अध्यक्ष इन बातों को सुनता ही नहीं। मैं करूं तो क्या करूं मैंने आज तक कोई किताब नहीं पढ़ी। फिर भी एक जिम्मेदार व्यक्ति हैं। किताबें पढ़ना औरतों का काम है। ”
एक बार एक राजनीतिक बंदी “भूगर्भ शास्त्र” की कोई पुस्तक पढ़ रहा था। उसने अपनी कॉपी में कुछ उतारा था बारी ने उसे देख लिया और चिल्लाया पकड़ लिया। गुप्त लिपि क्या है, उसने इस विषय में सावरकर से भी पूछा।
उन्होंने बताया कि वह बंदी भूगर्भ शास्त्र पढ़ रहा है, किंतु बारी के पल्ले कुछ नहीं पढ़ा।
मुस्लिम होने के कारण मैं अंग्रेजी नहीं समझता था। दूसरे दिन दंड स्वरूप 2 सप्ताह के लिए उस की पुस्तकें छीन ली।
Source : Independent.co.uk