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क्या थीं तियानमेन चौक की घटना जिसमें हजारों लोग मरे

कम्युनिस्टों द्वारा किए गए नरसंहार का इतिहास
The biggest massacre done by China : चीन में कम्युनिस्ट सरकार 1949 से अस्तित्व में हैं. चीन में कम्युनिस्ट शासन की शुरुआत नरसंहारों से हुई थी. 1948-1951 यानि तीन सालों में 10,00,000 से भी ज्यादा लोगों की हत्या की गयी थी. यह सिलसिला कभी नहीं थमा. साल 1967 में 5000 लोगों को मार दिया गया. ऐसे ही 1979, 1994, 1998 और 2014 में भी नरसंहार हुए है.
क्या थीं तियानमेन चौक की घटना

अप्रैल, 1989 में रिफार्मिस्ट पार्टी के उपेक्षित नेता हु याओबांग की मौत पर क्षुब्ध छात्रों ने थियानमेन चौक पर कब्जा कर लिया था । वे एक पारदर्शी सरकार और अपने लिए ज्यादा लोकतांत्रिक अधिकार चाहते थे ।इस नर संहार को ‘‘चार जून की घटना’’ के रूप में भी जाना जाता है जो चीन के इतिहास में एक बड़ा धब्बा है 4 जून, 1989 में बीजिंग में मानव खून की नदियाँ बह रही थी. एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन के खिलाफ चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने बीजिंग की सड़कों पर टैंक उतार दिए. कुछ ही घटों में 10000 लोगों की जान चली गयी. इस घटना को थियानमेन स्‍क्‍वॉयर नरसंहार के नाम से जाना जाता है The biggest massacre done by China

चीन की कम्युनिस्ट सरकार स्वभावगत ही लोकतंत्र के खिलाफ है. यहाँ न चुनाव होते है, और न ही अभिव्यक्ति की आजादी है एवं सरकार की नीतियों का विरोध संभव नहीं है. इन्टरनेट पर भी कई प्रतिबन्ध लगाए हुए है. भारत के कम्युनिस्ट चीन से बेहद प्रेरित है.कम्युनिज्म के इस विचार ने बंदूक और हिंसा के दम पर नक्सलवाद और अलगाववाद पैदा किया. सेना के जवानों के निधन पर जश्न मनाया और भारत के विभाजन का समर्थन किया है. पिछले दिनों जेएनयू में कम्युनिस्ट छात्रों द्वारा भारत विरोधी प्रदर्शन भी इसी वैचारिक परम्परा से पोषित था. आजकल इनका नया प्रारूप ‘अर्बन नक्सल’ के रूप में सामने है
बैकग्राउंड :

1949 में माओ त्सेतुंग ने तियानमेन चौक में लाल झंडा फहराकर कम्युनिस्ट सरकार बनाई.1966 में सांस्कृतिक क्रांति की शुरुआत की. 10 साल तक सांस्कृतिक क्रांति की आड़ में हजारों लोगों को मारा गया. लाखों लोगों को मार कर भगाया गया. माओ के मरने के साथ इसका अंत हुआ. नए राष्ट्राध्यक्ष आने के बाद उनकी नीतियों की वजह से चीन में भ्रष्टाचार, वंशवाद, मुद्रास्फीति, महंगाईऔर नगदी की कमी काफी ज्यादा बढ़ गई. हो गई पूरे चीन में नौकरशाही हावी हो चुकी थी. नियंत्रण अधिक से अधिक नौकरशाहों के हाथ में था. लोगों में आक्रोश बढ़ता गया. The biggest massacre done by China


समाज में असंतोष

भारी संख्या में छात्र सरकार के विरोध के लिए तैयार थे. छात्रों को चीन में लोकतंत्र चाहिए था.बुद्धिजीवी वर्ग लोकतंत्र की मांग करते हुए सड़कों में आकर चीन के सरकार की नाकामियों को बताने लगे, उसकी आलोचना करने लगे. चीन में कम्युनिस्ट सरकार की आलोचना का मतलब है अपनी मौत को दावत देना. यही हुआ भी. बुद्धिजीवी कहने लगे कि जिस तरह से एक पार्टी-एक नेता यहाँ शासन कर रहें हैं वो हमारे देश को खोखला कर रहा है. बुद्धिजीवियों से प्रभावित होकर हजारों छात्रों ने इस आंदोलन में शामिल होने का निर्णय लिया.


लोकतंत्र की मांग के लिए छात्र आंदोलन :

फैंग लीज़ी नामक एक एस्ट्रोफिजिक्स के प्रोफेसर ने खुलकर सरकार की नीतियों की आलोचना की थी. इनके प्रभाव और लगातार बयानों के बाद यह इस आंदोलन की चिंगारी की शुरुआत हुई. ह्यू याओबांग ने कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव होते हुए छात्रों और बुद्धिजीवियों की मांग को जायज ठहराया. इसके बाद उन्हें बेइज्जत कर पार्टी से निष्कासित कर दिया जिसके बाद दिल के दौरे के बाद उनकी मृत्य हो गई. इस हादसे के बाद पूरे चीन में छात्रों का गुस्सा चरम पर था. लोकतंत्र की मांग को अब वो छोड़ना नहीं चाहते थे. चीन के बड़े और मुख्य विश्विद्यालयों में विद्यार्थी इकट्ठा होने लगे. इसके बाद तियानमेन चौक में आकर प्रोटेस्ट करने लगे. सबसे अधिक पेकिंग विश्वविद्यालय के छात्र इस आंदोलन में शामिल थे. छात्रों के साथ उनके अभिवावक भी शामिल थे. 16-20 अप्रैल तक लोकतंत्र के लिए हो रहे इस आंदोलन की आग पूरे चीन में फैल चुकी थी. The biggest massacre done by China


आंदोलन की मुख्य 7 मांगे थी :

  1. ह्यू याओबंग के लोकतंत्र के मॉडल को अपनाया जाए
  2. बुर्जुआ लिबरल होना
  3. नेताओं की संपत्ति को सार्वजनिक करना
  4. प्रेस सेंसरशिप हटाना
  5. शिक्षा के लिए फण्ड
  6. छात्रों पर लगे सब प्रतिबंध हटाना
  7. छात्रों के इस आंदोलन के उद्देश्यों के बारे में सही जानकारी पूरे देश के सामने रखना

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चीन की तत्कालीन सरकार ने इसे पूरी तरह नज़रंदाज़ कर दिया.

23 अप्रैल को “बीजिंग स्टूडेंट्स ऑटोनॉमस फेडरेशन” का गठन किया गया. सरकार और संगठन आमने सामने थे. कम्युनिस्ट पार्टी के विरोध वाली अन्य गैर कम्युनिस्ट पार्टी इस आंदोलन के समर्थन में आ गई थी. कम्युनिस्ट पार्टी में तत्कालीन स्थिति की वजह से ज़ाओ जियांग नए महासचिव बनते हैं. ये भी छात्रों के मांग का समर्थन करते हैं. पार्टी के अंदर ही दो फाड़ हो चुका होता है. एक उदार और दूसरे हार्डकोर. The biggest massacre done by China

हार्डकोर लाइन के नेता रहे ली पेंग ने साफ तौर से इस आंदोलन और उसकी मांगों को कुचलने की मांग की. तत्कालीन राष्ट्रपति ने भी ली पेंग की बातों का समर्थन किया. एक साक्षात्कार के दौरान ली पेंग ने कहा था कि “हमने ह्यू याओबांग और ज़ाओ जियांग जैसों पर भरोसा कर गलती की, क्योंकि ये लोग गद्दार हैं.” चीन में लोकतंत्र की मांग करने वाले गद्दार ही होते हैं. 26 अप्रैल को पीपल्स डेली ने सभी आंदोलनकारियों को देशद्रोही करार दिया गया. 27 अप्रैल को तकरीबन1 लाख लोग तियानमेन चौक की पर पहुँचते हैं. कम्युनिस्ट पार्टी ने लोकतंत्र लाने से साफ इंकार कर दिया.


मार्शल लॉ :

आंदोलन दिनों-दिन बढ़ता जा रहा था. सरकारी नियंत्रण से बाहर हो चुका था. इसकी वजह से कम्युनिस्ट सरकार ने वहाँ मार्शल लॉ लगाने का निर्णय लिया. 20 मई को मार्शल लॉ लगा दिया गया. वहाँ पहुँचे सैनिकों से भी आंदोलनकारी बात कर रहे थे. उनको भी आंदोलन में शामिल करने को प्रेरित किया गया. कुछ सैनिक लोकतंत्र की चाहत में इस आंदोलन में शामिल भी हुए. 3 जून की रात में चीनीसेनाने गोलीबारी शुरू कर दी. 35-36 लोग मारे गए. 4 जून सुबह 4 बजे निहत्थे शांति से मार्च कर रहे छात्रों, बच्चों, बुजुर्गों के लिए चीनी सरकार ने टैंक, लड़ाकू विमान और हथियारबंद जवानों को तियानमेन चौक परतैनातकरदियाऔरगोलीबारीशुरूकरदी.
आँकड़ें :

चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने आधिकारिक आंकड़ों में मौतों की संख्या सिर्फ 300 बताई थी लेकिन ब्रिटिश पुरालेख के अनुसार तियानमेन चौक में हुए इस नरसंहार में 10 हजार से अधिक आम नागरिक मारे गए थे | The biggest massacre done by China

Source : wikipedia

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