Story Of chandershekhar azad
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आजाद जी की ईमानदारी देख चने वाला हुआ हेरान – Story Of Chander Shekhar Azad

Story Of Chander Shekhar Azad : चंद्रशेखर आजाद की ऐसी ही एक कहानी प्रसिद्ध है। बुन्देलखण्ड में कार चलाने का प्रशिक्षण लेते समय उनकी आर्थिक हालात इतनी खस्ता थी  कि उन्हें कभी कभी बिना खाये ही सोना पड़ता था।  एक दिन उनके  पास बस एक इंकनी बची थी ।

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उन्हें बहुत भूख लगी थी। उन्होंने सोचा  कि इस इंकनी से चने खरीद कर खाये जाए। उन्होंने इंकनी के चने खरीदे ओर घर आकर खाने लगे, तभी उन्हें चने की पुड़िया में एक चवन्नी  दिखाई दी । उनके मन ने कहा रख लो, कई दिनों में खाने का इंतज़ाम हो गया समझो ।

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लेकिन दूसरे मन ने कहा – यह ठीक नही होगा । अगर मैं ऐसा करु तो वह भी एक तरह की चोरी हुई। उन्होंने चने खाकर पानी पिया ओर चवन्नी लेकर भड़भूँजे की दुकान पर पहुंच गये और बोले , क्यो भाई , आपके यहां इंकनी के चने खरीदने पर चवन्नी भी दी जाती है क्या? पैसे ऐसे लुटाते रहोगे तो फिर कमाओगे कैसे? यह कहकर उन्होंने चवन्नी भड़भूँजे को लौटा  दी ।

उस भड़भूँजे से आजाद अक्सर चने खरीदते थे, सो वह जानता था कि उनकी माली हालत  क्या है । इनती मुश्किल  में भी इतनी ईमानदारी से पेश आए आजाद के समुख वह नमस्तक हो गया । Story Of chander shekhar azad

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बचपन कि एक सीख ने बनाया इमानदार

मध्यप्रदेश अंतर्गत झाबुआ जनपद के भाबरा गाँव  में 23 जुलाई, 1906 को जन्मेचंद्रशेखर आज़ाद को बचपन में ही माता-पिता ने सिखाया था कि ‘अपराधी को दंड मिलना ही चाहिए।’ इस सिद्धांत को वह अपना जीवन-सूत्र बना लिये थे।

झाबुआ के जनजातीय बंधुओं से बचपन में चंद्रशेखर आज़ाद ने तीरंदाजी सीखा था।

आज़ादके माता-पिता उत्‍तर प्रदेश के उन्‍नाव जिले के बदरका ग्राम से तत्‍कालीन देशी राज्‍य अलीराजपुर के भाबरा में आ बसे थे।

उनकी  माता का नाम जगरानी देवी व पिता का नाम पं. सीता  राम तिवारी था।

माँ उन्हें संस्कृत का शिक्षक बनाना चाहती थीं। परिवार के दबाव में अलीराजपुर में नौकरी शुरू की लेकिन बाद में 1920-21 के जमाने में घर से भाग कर कुछ दिनों बंबई(मुंबई)  में नौकरी की। मुंबई में मजदूरों पर अंग्रेजों का शोषण देखकर उनके विरुद्धसंघर्ष की चेतना विकसित हुई , लेकिन वहाँ उनका मन नहींलगा। वहाँ से बनार स पहुँचे और विद्यापीठ में दाखिल हुए।

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