जम्मू कश्मीर में पिछले 3 दशकों से बंद शीतलनाथ मंदिर को बसंत पंचमी के मौके पर खोल दिया गया है. यह मंदिर 31 साल बाद खुला और खुलते ही श्रद्धालुओं ने यहां पर पूजा अर्चना की. श्रीनगर के हब्बा कदल इलाके में स्थित यह मंदिर कश्मीर के उन हालातों की गवाही देता है जो आतंकवाद से जुड़े रहे हैं. 90 की दशक में जब घाटी में आतंकवाद ने सिर उठाना शुरू किया और कश्मीरी पंडितों का नरसंहार हुआ तो इस मंदिर को बंद कर दिया गया था। sheetleshwar temple Kashmir
2,000 साल पुराना मंदिर
शीतलनाथ मंदिर को शीतलेश्वर मंदिर के नाम से भी जानते हैं. यह मंदिर कश्मीर के सबसे पावन मंदिरों में आता है।
पश्चिम दिशा की तरफ स्थित मंदिर घाटी में बसे हिंदुओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है. कहते हैं कि इस मंदिर करीब दो हजार साल पुराना है. कश्मीर मामलों के बारे में जानकार और रिटायर्ड प्रोफेसर डॉक्टर त्रिलोकी नाथ गंजू ने इस मंदिर के बारे में विस्तार से लिखा है। sheetleshwar temple Kashmir
15वीं सदी में हुआ जिक्र
इस मंदिर का जिक्र कश्मीर के आंठवें सुल्तान जाइन अल अब्दीन के इतिहासकार जोनाराजा ने भी किया था. उन्होंने हेतकेश्वरा में इस मंदिर का जिक्र भैरव मंदिर और शीतलेश्वर के तौर पर किया है. इससे साफ होता है कि 15वीं सदी में जब कश्मीर में सुल्तान राज कर रहे थे तो उस समय भी इस मंदिर की अहमियत कहीं ज्यादा थी।
अफगान शासकों ने कर दिया नष्ट
कश्मीर के इतिहासकारों की मानें तो इस मंदिर को अफगान शासकों ने जान-बूझकर नष्ट कर दिया था. सन् 1990 में आतंकियों ने इस मंदिर से लगे हवन कुंड को खत्म कर दिया था. इसकी वजह से एक बड़ा संकट पैदा हो गया था. देश में जब आजादी का संघर्ष शुरू हुआ तो उस समय इस मंदिर का कद काफी बढ़ गया।
आजादी के संघर्ष का गवाह
कहा जाता है कि जवाहर लाल नेहरु से लेकर खान अब्दुल गफार खान और महात्मा गांधी तक ने इस मंदिर के गलियारे से कश्मीरी लोगों को संबोधित किया था. यहां पर होने वाले कार्यक्रमों की वजह से यह मंदिर कश्मीर के लोगों के लिए उनकी अभिव्यक्ति का एक माध्यम बन चुका था।
आतंकियों ने बनाया निशाना sheetleshwar temple Kashmir
श्रीनगर का हब्बा कदल अक्सर ही तनाव की वजह से चर्चा में रहा. इस जगह को अक्सर ही लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिद्दीन के आतंकियों ने निशाना बनाया है. दरअसल हब्बा कदल लकड़ी का एक पुल है और पुराने श्रीनगर में है. यह पुल झेलम नदी के ऊपर से गुजरता है. इस पुल को सबसे पहले सन् 1551 में सुल्तान हबीब शाह ने बनवाया था।
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कश्मीर की पहचान हब्बा कदल
श्रीनगर में इस समय सात पुल हैं जो अभी तक मौजूद हैं और हब्बा कदल उनमें से ही एक है. सन् 1893 में पुल पूरी तरह से नष्ट हो गया था और इसे फिर से बनवाया गया. सन् 2013 में पुल का रेनोवेशन का काम शुरू हुआ और सरल 2015 में इसे फिर से खोल दिया गया।