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सिंध का हिन्दू देवता जिसे मुस्लिम भी पूजते हैं

Sant Jhulelal : दसवी शताब्दी में सिंध प्रदेश के पूर्व में मर्खशाह नाम के एक मुस्लिम का शासन था | उस समय मर्खशाह की राजधानी थट्टा नगर हुआ करती थी जो कि कराची से 50 मील की दुरी पर स्थित थी | उस समय हिन्दुओं की बहुत भयानक स्थिति थी | तलवार के बल पर हिन्दुओं को इस्लाम कबूल करवाया जा रहा था, जो नहीं करता था उसे मार दिया जाता | हिन्दुओं के मन्दिरों को तोड़ा गया और हमारे पवित्र ग्रंथो को जला दिया गया | | यहाँ तक कि महिलाओं का अपहरण करके उनके साथ कुकर्म किया जाने लगा | उस शासन काल में हिन्दू धर्म अपनी आखिरी सांसे गिन रहा था | Sant Jhulelal

संत झुलेलाल का जन्म 

इस स्थिति से निकलने के लिए सिंध के हिन्दू थट्टानगर के निकट सिन्धु नदी के तट पर एकत्रित हुए और उन्होंने 40 दिन तक धार्मिक अनुष्ठान किया और वरुण देवता से हिन्दुओं को बचाने के लिए आवाहन किया | इसके बाद वहाँ पर आकाशवाणी हुई कि नसरपुर के ठाकुर रतनराय के घर माता देवकी के गर्भ से जनमा बालक आपकी रक्षा करेगा और आपको अत्याचारों से मुक्त करेगा | भविष्यवाणी सच निकली और विक्रमी संवत 1007 को चैत्र शुक्ल द्वित्या के दिन नसरपुर में  उनका जन्म हुआ | बालक का नाम उदयचंद था लेकिन झूले में झूलने के शौंक के कारण उनका नाम झुलेलाल पड़ गया |  उनको उडेरोवाला , घोड़ेवारो , पल्लेवारों , ज्योतिन्वारों और अमरलाल नाम से भी जाना जाने लगा | Sant Jhulelal

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संत झुलेलाल जी

समाज जागरण तथा हिन्दुओं का मनोबल बढ़ाना

संत झुलेलाल ने यह निष्कर्ष निकाला था कि अगर हिन्दू समाज जागृत होता है तभी उनका बचना सम्भव है | उनका मानना था कि वे अभी अपनी दैवीय शक्तिओं से तो हिन्दुओं को मर्खशाह से बचा लेंगे लेकिन भविष्य में कभी उनके साथ इस प्रकार का अत्याचार न हो इसके लिए उनको स्वयं ही अपनी रक्षा करनी सीखनी होगी | अपनी किशोरावस्था में उन्होंने अनेक चमत्कार दिखाए जिससे हिन्दू जनता का उन पर विश्वास हो गया |

अनेक स्थानों पर जाकर संत झुलेलाल जी ने हिन्दू समाज का जागरण करना शुरू कर दिया था | उन्होंने हिन्दुओं से कहा कि युगों युगों से आप जिस वरुण देवता की पूजा करते आये हो वो मैं ही हूँ , तथा भयमुक्त हो जाओ और अपने आप को संगठित करना शुरू कर दो | क्योंकि मर्खशाह हिन्दुओं की संगठित शक्ति का सामना नहीं कर पायेगा | इन सब बातों का हिन्दू जनता पर गहरा प्रभाव पड़ा और उनके अंदर आत्मविश्वास जागृत होना शुरू हो गया | Sant Jhulelal

संत झुलेलाल का मर्खशाह को संदेश

संत झुलेलाल जी ने मर्खशाह  को संदेश भेजा कि तुम्हारा कर्तव्य जनता की बिना भेदभाव के सेवा करना है और उनकी रक्षा करना है लेकिन तुम हिन्दुओं पर अत्याचार कर रहे हो | यदि  तुमने हिन्दुओ पर अत्याचार करना बंद नहीं किया तो दंड भुगतने के लिए तैयार हो जाओ | इसी समय आकाश में भीषण गर्जना हुई और मुसलाधार बारिश होने लगी | बरसात के कारण नदियों में आई बाढ़ से थट्टा नगरी जलमग्न हो गई | मर्खशाह यह देखकर डर गया लेकिन कट्टर होने के कारण वह नहीं माना और न उसने कोई उत्तर दिया |

लेकिन जब झुलेलाल जी को कोई अन्य रास्ता नहीं दिखा तो उन्होंने हिन्दुओं की संगठित सेना के साथ थट्टा नगर पर आक्रमण कर दिया | भीषण युद्ध के बाद संत झुलेलाल जी के नेतृत्व में हिन्दुओं ने थट्टानगर को जीत कर वहाँ पर अपना अधिकार कर लिया | इसके बाद जनता के आग्रह पर संत झुलेलाल जी वहाँ पर शासक बनें और उन्होंने हिन्दू से मुस्लिम बन चुके 5 लाख हिन्दुओं की घर वापसी भी की | इस प्रकार झुलेलाल जी ने सिंध में हिन्दुओं को इस्लामिक अत्याचारों से मुक्ति दिलवाई | Sant Jhulelal

कैसे होती है संत झुलेलाल की पूजा

इसके बाद संत झुलेलाल जी सिन्धी हिन्दुओं के ईष्ट देवता बन गये | जहाँ जहाँ भी सिंध के हिन्दू रहते है वहाँ उनके लिए अलग से मन्दिर जरुर बनाया जाता है| संत झुलेलाल जी की पूजा करने के लिए चालिहा मनाया जाता है | 40 दिन तक पूजा चलने के कारण इसे चालिहा कहते है | इन 40 दिनों के अंदर उनके भक्त बाल नहीं कटवाते , मांस नहीं खाते और मदिरा का भी सेवन नहीं करते | 40 दिन पुरे होने पर चालीस घड़े , चालीस ज्योतियाँ , मीठे आटे के बने चालीस पिंड आदि विधि के साथ  समुन्द्र , तालाब यां कुएं में प्रवाहित किये जाते है | जो लोग 40 दिन तक पूजा नहीं कर सकते , वे 9 दिन तक ही पूजा करते है और नवे दिन को नौरोजो कहते है |

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संत झुलेलाल जी की जयंती भी बड़े धूमधाम से मनाई जाती है | इस दिन को सिन्धी में चेटीचंड कहतें है | इस दिन काष्ठ का एक मन्दिर बनाकर उसमें लोटे से जल चढ़ाया जाता है और ज्योति भी प्रज्वल्लित की जाती है | इसको भक्त अपने सिर पर उठाकर झुलेलाल जी की स्तुतिगान करते है | इस अवसर पर सिन्धी समाज का परम्परागत लोकनृत्य छेज भी किया जाता है |

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