Samarth Ramdas
Samarth Ramdas : समर्थ रामदास जी का जन्म महाराष्ट्र में गोदावरी के निकट जाम्ब नामक स्थान पर इनका जन्म हुआ । वे बचपन से ही राम और हनुमान के भक्त थे समर्थगुरु ने नासिक में गोदावरी के तट पर बारह वर्षों तक कठोर साधना की । प्रातः काल से दोपहर तक कमर तक जल में खड़े होकर गायत्री मन्त्र का पाठ करते थे । राममन्त्र पुरश्चरण ‘श्री राम जय राम जय जय राम’ नामक मन्त्र का उन्होंने तेरह करोड़ बार जप किया। इसके पश्चात् देश के विविध तीर्थस्थलों के भ्रमण के लिए वे निकल गए | रामदास पण्ढरपुर आये तो उनकी भेंट तुकाराम से हुई। उस समय देश की सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक परिस्थिति को देखकर उनको बहत दुःख हआ। समर्थगुरु रामदास को ऐसा लगा कि स्वयं प्रभुराम शिवाजी की सहायता करने का आदेश कर रहे हैं| समर्थ रामदास जी ने समाज में फैले हुए भेदभाव को खत्म करने पर जोर दिया और समाज को एक सूत्र में पिरोने का साहस दिखाया| समर्थगुरु रामदास जी ने रामनवमी के प्रसंग पर चाफल क्षेत्र के निकट भोरवाड़ी नामक गाँव के एक सहस्र अस्पृश्य कहे जाने वाले दंपतियों को आमंत्रित किया। उन्हें मांड नदी में स्नान कराने के पश्चात् उन सभी की पूजा की। पुरुषों को धोती तथा उपरना दिया और स्त्रियों को साड़ी तथा चोली दी। सभी को सम्मान के साथ भोजन कराया और दक्षिणा दी। उस समय हर तरफ मुस्लिम आक्रमणकारियों का जोर था , समर्थ रामदास ऐसे संत हैं, जिन्होंने इस्लाम के आतंक से देश को मुक्त कराने का योजनाबद्ध प्रयास किया। प्रथम चरण में उन्होंने कृष्णा नदी के उद्गम महाबलेश्वर में वीर हनुमान मन्दिर बनाया, मठ स्थापित किया और धीरे-धीरे ग्यारह बड़े मठ और हनुमान मन्दिर स्थापित कर दिये । आगे चलकर पूरे महाराष्ट्र में हजारो हनुमान मन्दिर और अखाड़ों की स्थापना समर्थगुरु ने कर दी। उन्होंने कहा :
देव मस्तकी धरावा। अवघा हलकल्लोळ करावा।।
मुलुख बडवा कि बुडवावा। धर्मस्थापनेसाठी॥ (वही, पृ. 191)
अर्थात् ‘परमेश्वर को सिर पर धारण करते हुए चारों ओर सेहो हल्ला मचाओ (युद्ध छेड़ दो) और धर्म की स्थापना के लिए जो हमारे देश को तबाहकरने वाले हैं ऐसे मुसलमान शासकों पर टूट पड़ो।’ अपने स्वराज्य की धर्म का कार्य है । अतः इसके लिए प्राणों की आहुति देने से डरो नहीं।
धर्म कारितां मरावे। मरोनि अवघ्यांसी मारावे।
मारितां मारितां घ्यावे। राज्य आपुले॥ (वही, पृ. 191)
अर्थात् ‘धर्म स्थापना हेतु मरने को तैयार रहो । मारते-मारते मृत्य का वरण करो और अपने स्वराज्य की स्थापना करो।’ विजय अपनी ही होगी ऐसा विश्वास दिलाते हुए वे सभी ईश्वरभक्तों का आह्वान करते हैं
देवद्रोही तितुके कुत्ते। मारोनि घालावें परतें।
देवदास पावती फत्ते। यदर्थी संशयो नाहीं॥ (वही, पृ. 192)
अर्थात् ‘जितने भी देवद्रोही अर्थात् हिन्दू मन्दिरों पर आक्रमण करने वाले जो लोग हैं, वे सभी कुत्ते हैं । उनको मारने वाले देवदास अर्थात् ईश्वर के भक्त हैं । इन ईश्वरभक्तों की विजय अवश्य होगी, इसमें लेशमात्र भी संशय नहीं है।’
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समर्थगुरु रामदास सारे देश में हिन्दू समाज के अन्दर एक जागृति और संगठन लाना चाहते थे। उन्होंने अपनी विशाल शिष्य परम्परा में से लगभग ग्यारह सौ शिष्यों को महंत बनाया, इनमें तीन सौ महिलाएं भी थीं। ये सभी देश भर में फैल गए और स्थान-स्थान पर जाकर हिन्दू समाज को संगठित करने का प्रयास करने लगे। इनके नेतृत्वमा हजार से अधिक मठ स्थापित हए तथा इन मठों में जातिगत भेदभाव को कोई स्थान नहीं था। तंजावुर से लेकर कश्मीर तक समर्थ रामदास द्वारा स्था” मठ, अखाड़े तथा मन्दिरों की सशक्त श्रृंखला ने शिवाजी महाराज को बहुत सहयोग किया। शिवाजी महाराज के पुत्र राजाराम को जब महाराष्ट्र छोड़ कर दक्षिण में जाना पड़ा, तब तंजावुर मठ के कारण ही वे औरंगजेब से बीस वर्षों तक संघर्ष करते रहे Samarth Ramdas
Source : Medieval Indian Literature: Surveys and selections Page 368