विश्व युद्ध के बाद एक ऐसा दौर आया जब दो महाशक्तिया रूस और अमेरिका पूरे विश्व में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए शीत युद्ध लड़ रहे थे और युद्ध खुफिया एजेंसी द्वारा लड़ा जा रहा था|
सन 1992 को रूस की खुफिया एजेंसी केजीबी का एक एजेंट जिसका नाम Vasili Mitrokin था , रूस की एजेंसी को छोड़कर ब्रिटेन की शरण में आया और वहां पर उसने कई किए और इन खुलासों के आधार पर एक किताब लिखी गई जिसका नाम है Mitrokin Archive | इस पुस्तक में लिखा है कि कैसे-कैसे रूस की केजीबी ने हर देश में काम किया और देश की अर्थव्यवस्था , राजनितिक हालातों को खराब किया |
इसी पुस्तक में एक चैप्टर है जिसका नाम है स्पेशल रिलेशन विद इंडिया जिसमें साफ तौर पर कहा गया है कि नेहरू के काल में ,नेहरू सरकार में रक्षा मंत्री कृष्ण मेनॉन सोवियत संघ के पूरे पक्ष में था और उनका एजेंट था।
krishna menon
कृष्ण मेनॉन कांग्रेस पार्टी के नेता और नेहरु के बहुत ही नजदीकी सलाहकार थे कृष्ण मैनन 1957 में देश के रक्षा मंत्री बनाये गये | उस वक्त सोवियत संघ एजेंसी केजीबी उनको भारत में अपना एजेंट स्थापित करना चाहती थी | 1962 में तय किया गया कि केजीबी मेनन के ऊपर काम करें और उनकी व्यक्तिगत छवि को भारत में बढ़ाने का कार्य करे क्योंकि वे मानते थे कि नेहरू के बाद अगला प्रधानमंत्री कृष्ण मेनॉन ही होगा | उसी दौरान भारत ने पश्चिम देशों को छोड़ कर सोवियत संघ से रक्षा सौदे करने शुरू कर दिए थे | यह मेनन का ही प्रभाव था जसके कारण भारत ने British Lightning के बजाये सोवियत संघ से MiG 21s खरीदने का फैंसला किया था |
Vasili Mitrokhin
लेकिन 1962 में चीन द्वारा भारत पर हुए हमले के कारण कृष्ण मेनन की छवि खराब होने लगी , लेकिन रूस एक तरफ मेनन की छवि को सुधारने के लिए कार्य कर रहा था दूसरी और पुरे भारत में उसका विरोध हो रहा था | भारत में जोरदार विरोध के कारण 31 अक्टूबर 1962 को कृष्ण मेनन को नेहरू द्वारा रक्षा मंत्री पद से हटा दिया गया। उसके बाद भी केजीबी ने उसकी छवि को सुधारने के लिए कई न्यूज़पेपरों को पैसे दिए थे |
1967 के इलेक्शन से पहले कृष्ण मेनन को गुप्त रूप से सोवियत संघ द्वारा एक संदेश भेजा गया जिसमें सोवियत यूनियन का पक्ष लेने के लिए उसको बहुत ही सराहा गया था। कृष्ण मेनन मुंबई से चुनाव लड़ते थे लेकिन इस बार कांग्रेस पार्टी ने उनको टिकट नहीं दिया जिसके कारण वह चुनाव स्वतंत्र दावेदार के रूप में लड़े , लेकिन उनको हार का सामना करना पड़ा। उसके बाद 2 वर्षों बाद ही बंगाल में कम्युनिस्ट पार्टी की सहायता के साथ वे आज़ाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव जीत गये |
कृष्ण मेनन की इसी बात से पता चलता है कि वह रूस से कितने ज्यादा प्रभावित थे कि उन्होंने वेतनाम युद्ध में अमेरिका को अपनी सेना वापस ले जाने के लिए कहा , उन्होंने अमरीकी सेना का इस बात पर विरोध किया कि अमेरिकी सेना ने वियतनाम के लोगों के साथ बहुत ज्यादा जुल्म किया। इन सभी बातों से यह स्पष्ट हो जाता है कि नेहरू काल में सरकार कोई और नहीं केवल सोवियत संघ के प्रभाव में आए हुए मंत्री ही चला रहे थे। कहा तो यह जाना चाहिए किकेवल सरकार में ही नहीं बल्कि भारत की पूरी की पूरी संसद में बहुत से ऐसे व्यक्ति थे जो उस समय सोवियत संघ के पक्ष में थे।
Source : Mitrokin Archive||, Chapter : Special Relation With Indian National Congress