Mahmud Ghazni Dual Defeat in Kashmir :
Mahmud Ghazni Dual Defeat in Kashmir :

महमूद ग़ज़नी 2 हमलो के बाद भी कश्मीर जीत न पाया था

Mahmud Ghazni Dual Defeat in Kashmir : कश्मीर की दुरूह भौगोलिक स्थिति की वजह से वहां किसी तरह का बाहरी घुसपैठ आसान नहीं था. इसके अलावा कश्मीर के राजा भी अपनी सीमाओं को पूरी तरह बंद रखते थे और बाहरी संपर्क को हतोत्साहित करते थे.

1017 में भारत की यात्रा करने वाले अल-बेरूनी ने इस बारे में बहुत ही शिकायती लहजे में लिखा है- ‘कश्मीरी राजा ख़ास तौर पर अपने राज्य के प्राकृतिक संसाधनों के बारे में बहुत चिंतित रहते हैं. इसलिए कश्मीर तक पहुंचने वाले हर प्रवेश-मार्ग और सड़कों पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए वे बहुत सावधानी बरतते हैं.”

“इस वजह से उनके साथ किसी भी तरह का व्यापार करना भी बहुत मुश्किल है. वे किसी ऐसे हिंदू को भी अपने राज्य में नहीं घुसने देते जिन्हें वे व्यक्तिगत रूप से जानते न हों.”

ध्यान रहे कि अल-बेरूनी का काल महमूद ग़ज़नी का काल भी है. भारत पर किए गए ग़ज़नी के कई आक्रमणों से हम परिचित हैं. ग़ज़नी से क़रीब सौ साल पहले काबुल में लल्लिया नाम के एक ब्राह्मण मंत्री ने अपनी राजशाही स्थापित की थी जिसे इतिहासकार ‘हिंदू शाही’ कहते हैं. उन्होंने कश्मीर के हिंदू राजाओं के साथ गहरे राजनीतिक और सांस्कृतिक संबंध क़ायम किए थे.

A forgotten Hindu Warrior! Why the Indians need to know about Raja ...

ग़ज़नी ने जब उत्तर भारत पर हमला करने की ठानी तो उसका पहला निशाना यही साम्राज्य बना. उस समय काबुल का राजा था जयपाल. जयपाल ने कश्मीर के राजा से मदद मांगी. मदद मिली भी, लेकिन वह ग़ज़नी के हाथों पराजित हुआ. पराजित होने के बाद भी जयपाल के बेटे आनंदपाल और पोते त्रिलोचनपाल ने ग़ज़नी के ख़िलाफ़ लड़ाई जारी रखी.

त्रिलोचनपाल को तत्कालीन कश्मीर के राजा संग्रामराजा (1003-1028) से मदद भी मिली, लेकिन वह अपना साम्राज्य बचा न सका. 12वीं सदी में ‘राजतरंगिणी’ के नाम से कश्मीर का प्रसिद्ध इतिहास लिखने वाले कल्हण ने इस महान साम्राज्य के पतन पर बहुत दुःख जताया है. Mahmud Ghazni Dual Defeat in Kashmir

ग़ज़नी ने इसके बाद आज के हिमाचल का हिस्सा कांगड़ा भी जीत लिया, लेकिन कश्मीर का स्वतंत्र हिंदू साम्राज्य उनकी आंख का कांटा बना रहा. 1015 में उन्होंने पहली बार तोसा-मैदान दर्रे के रास्ते कश्मीर पर हमला किया, लेकिन दुर्गम भौगोलिक परिस्थिति और कश्मीरियों के ज़बरदस्त प्रतिरोध की वजह से उन्हें बहुत अपमान के साथ वापस लौटना पड़ा.

यह भारत में किसी युद्ध में उनके पीछे हटने का पहला मौक़ा था. वापसी में उनकी सेना रास्ता भी भटक गई और घाटी में आए बाढ़ में फंस गई. अपमान के साथ-साथ ग़ज़नी का नुक़सान भी बहुत हुआ.

यह भी पड़िए : ग़ज़नी के भतीजे को भारत से खदेड़ने की गौरवशाली गाथा : Raja Suheldev Pasi

छह साल बाद 1021 में अपने खोए हुए सम्मान को अर्जित करने के लिए ग़ज़नी से फिर से उसी रास्ते कश्मीर पर हमला किया. लगातार एक महीने तक उसने ज़बरदस्त प्रयास किया, लेकिन लौहकोट की क़िलाबंदी को वह भेद न सका. घाटी में बर्फ़बारी शुरू होने वाली थी और ग़ज़नी को लग गया कि इस बार उसकी सेना का हाल पिछली बार से भी बुरा होनेवाला है.

वह कश्मीर की अजेय स्थिति को भांप चुके थे. दोबारा अपमान का घूंट पीते हुए उन्हें फिर से वापस लौटना पड़ा. उसके बाद उन्होंने कश्मीर के बारे में सोचना भी बंद कर दिया. Mahmud Ghazni Dual Defeat in Kashmir

Bifurcation of J&K:From Kalhan's Rajtarangini to Today's Kashmir's ...

 

Sourc : Chandra, Satish (2006). Medieval India: From Sultanat to the Mughals-Delhi Sultanat (1206–1526) Part 1. Har-Anand Publication Pvt Ltd.

 

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