Kushal Singh Dahiya – इस्लाम कबूल न करने पर जालिम औरंगजेब ने भाई सती दास, भाई मतीदास और भाई दयाला
यातना देकर हत्या कर दी. 24 नबम्बर को औरंगजेब ने गुरु तेगबहादुर का भी शीश कटवा
दिया और उनके पवित्र पार्थिव शरीर की बेअद्वी करने के लिए शरीर के चार टुकड़े कर के उसे
दिल्ली के चारों बाहरी गेटों पर लटकाने का आदेश दे दिया. Kushal Singh Dahiya
लेकिन उसी समय अचानक आये अंधड़ का लाभ उठाकर एक स्थानीय व्यापारी लक्खीशाह
गुरु जी का धड और भाई जैता जी गुरु जी का शीश उठाकर ले जाने में कामयाब हो गए.
लक्खीशाह ने गुरु जी के धड़ को अपने घर में रखकर अपने घर को आग लगा दी. इस प्रकार
समझदारी और त्याग से गुरु जी के शरीर की बेअदवी होने से बचा लिया.
इधर भाई जैता जी ने गुरूजी का शीश उठा लिया और उसे कपडे में लपेटकर अपने कुछ साथियों
के साथ आनंदपुर साहब को चल पड़े. औरँगेजेब ने उनके के पीछे अपनी सेना लगा दी और
आदेश दिया कि किसी भी तरह से गुरु जी का शीश वापस दिल्ली लेकर आओ. भाई जैता जी
किसी तरह बचते बचाते सोनीपत के पास बढ़खालसा गाँव में पहुंचे गए,
मुगल सेना भी उनके पीछे लगी हुई थी. वहां के स्थानीय निवाशियों को जब पता चला कि –
गुरु जी ने बलिदान दे दिया है और उनका शीश लेकर उनके शिष्य उनके गाँव में आये हुए हैं तो
सभी गाँव वालों ने उनका स्वागत किया और शीश के दर्शन किये. दादा कुशाल सिंह दहिया को
जब पता चला तो वे भी वहां पहुंचे.और गुरु जी के शीश के दर्शन किये. Kushal Singh Dahiya
मुगलो की सेना भी गांव के पास पहुंच चुकी है. गांव के लोग इकट्ठा हुए और सोचने लगे कि
क्या किया जाए ? .मुग़ल सैनिको की संख्या और उनके हथियारों को देखते हुए गाँव वालों
द्वारा मुकाबला करना भी आसान नहीं था. सबको लग रहा था कि- मुगल सैनिक गुरु जी के
शीश को आनन्दपुर साहिब तक नहीं पहुंचने देंगे. अब क्या किया जाए ?
तब “दादा कुशाल सिंह दहिया” ने आगे बढ़कर कहा कि – सैनिको से बचने का केवल एक ही
रास्ता है कि – गुरुजी का शीश मुग़ल सैनिको को सौंप दिया जाए. इस पर एक बार तो सभी
लोग गुस्से से “दादा” को देखने लगे. लेकिन दादा ने आगे कहा – आप लोग ध्यान से देखिये
गुरु जी का शीश, मेंरे चेहरे से कितना मिलता जुलता है. Kushal Singh Dahiya
अगर आप लोग मेरा शीश काट कर, उसे गुरु तेगबहादुर जी का शीश कहकर, मुग़ल सैनिको को
सौंप देंगे तो ये मुघल सैनिक शीश को लेकर वापस लौट जायेंगे. तब गुरु जी का शीश बड़े
आराम से आनंदपुर साहब पहुँच जाएगा और उनका सम्मान के साथ अंतिम संस्कार हो जाएगा.
उनकी इस बात पर चारों तरफ सन्नाटा फ़ैल गया .
सब लोग स्तब्ध रह गए कि – कैसे कोई अपना शीश काटकर दे सकता है ?
पर वीर कुशाल सिंह फैसला कर चुके थे, उन्होंने सबको समझाया कि – गुरु तेग बहादुर कों
हिन्द की चादर कहा जाता हैं, उनके सम्मान को बचाना हिन्द का सम्मान बचाना है. इसके
अलावा कोई चारा नहीं है. फिर दादा कुशाल सिंह के आदेश पर उनके बेटे ने अपने पिता के
सिर उतारकर गुरुजी के शिष्यो को दे दिया.
जब मुघल सैनिक गाँव में पहुंचे तो सिक्ख दोनों शीश को लेकर वहां से निकल गए. भाई जैता
जी गुरु जी का शीश लेकर तेजी से आगे निकल गए औए जिनके पास दादा कुशाल सिंह दहिया
का शीश था, वे जानबूझकर कुछ धीमे हो गए, मुग़ल सैनिको ने उनसे वह शीश छीन लिया
और उसे गुरु तेग बहादुर जी का शीश समझकर दिल्ली लौट गए.
इस तरह धर्म की खातिर बलिदान देने की भारतीय परम्परा में एक और अनोखी गाथा जुड़ गई.
जहाँ दादा वीर कुशाल सिंह दहिया ने अपना बलिदान दिया था उसे “गढ़ी दहिया” तथा “गढ़ी
कुशाली” भी कहते हैं. सदियों से इतिहासकारों और सरकारों ने “दादा वीर कुशाल सिंह दहिया”
तथा इस स्थान को कोई महत्त्व नहीं दिया. Kushal Singh Dahiya
हरियाणा की वर्तमान सरकार के मुख्यमंत्री श्री मनोहरलाल खट्टर जी ने अब उस स्थान पर एक
म्यूजियम बनबाया है और वहां पर महाबलिदानी दादा कुशाल सिंह दहिया (कुशाली) की प्रतिमा
को स्थापित किया है. यह स्थान सोनीपत जिले में बढ़खालसा नामक स्थान पर है. सभी
धर्मप्रेमियों को वहां दर्शन के लिए जाना चाहिए.
गुरु तेगबहादुर की जय, वीर कुशाल सिंह दहिया की जय, भारत माता की जय
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