Krishna statue in Kaaba : Alfred Guillame ने इस्लाम नाम की पुस्तक लिखी है
थी और उसमें उन्होंने उल्लेख किया है कि प्राचीन अर्वस्थान में वृक्ष में भगवान का अस्तित्व
मानकर पूजा की जाती थी | इसी पुस्तक में लिखा है कि 630 में मौहम्मद ने जब काबा के
अंदर प्रवेश किया तो काबा के प्रवेश द्वार पर ईसा और माता मेरी और कुछ अन्य चित्र
बने हुए थे | Krishna statue in Kaaba
वास्तविक चित्र भगवान कृष्ण के थे Krishna statue in Kaaba
मौहम्मद की आज्ञा से ईसा और मेरी के चित्रों को छोड़कर अन्य चित्रों को मिटा दिया गया था |
वैसे भी यात्रियों को शिवलिंग सहित सारे काबा मन्दिर को चारदीवारी की परिक्रमा करनी पड़ती है |
अगर किसी मुस्लिम को मन्दिर के अंदर प्रवेश भी करने दिया जाता है तो उसे ये शपथ दिलवाई जाती
है कि वे इसके बारे में अन्य लोगों को नहीं बतायेंगे | Krishna statue in Kaaba
ईसाई लोग इन चित्रों को ईसा और मेरी का समझते है यह वास्तव में भगवन कृष्ण और यशोदा के थे |
इसके अलावा अरब देशों में कृष्ण भक्ति की परम्परा भी थी | मन्दिर के दरवाजे में बने चित्र ईसा के नहीं
है क्योंकि इस्लाम से पहले काबा पर मौहम्मद के घराने का ही अधिकार था और वे सभी वैदिक धर्म
का पालन करते थे | Krishna statue in Kaaba
एक अन्य तथ्य है कि एक बार गोरखपुर के किसी पीर के मुसलमान ज्ञानदेव नाम लेकर आर्यसमाजी
प्रचारक बन गये थे | ईरान के शाह के साथ वे चार पाँच बार हज भी गये थे | उन्होंने कहा था कि
काबा के प्रवेश द्वार में कांच का भव्य दीपकों का एक समूह लगा है और इसके उपर भगवत
गीता के श्लोक अंकित हैं | Krishna statue in Kaaba
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उस मन्दिर के अंदर घी का एक पवित्र दीपक भी जलता रहता है ऐसा लोगों का कहना है | वैदिक प्रथा में इसे नंदादीप कहते हैं जो ईश्वरीय तेज़ और ज्ञान का प्रतीक होत्या है | इन सभी बातों से यह स्पष्ट होता है कि वहाँ पर हमारे ही धर्म के लोग थे| Krishna statue in Kaaba
Source : वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास , लेखक : पुरुषोतम नागेश