Kashi, the city of Shiva – भोले बाबा की नगरी काशी मोक्षदायनी है। यहां बाबा के दर्शन करने भर से जीवन के कई कष्ट दूर हो जाते हैं और मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। काशी तीर्थस्थल है और इस प्राचीन नगरी में काशी विश्वनाथ का दर्शन करना किसी पुण्य काम से कम नहीं। बाबा विश्वनाथ का दर्शन करने के लिए देश नहीं विदेश से लोग आते हैं।
काशी का इतिहास(भाग 1) : क्यों भगवान शिव ने छोड़ी थी काशी
गंगा किनारे बसी काशी को भगवान शिव के त्रिशूल पर टिका हुआ माना गया है। कहते हैं काशी में आने पर बाबा का दर्शन जरूर करना चाहिए और जिसे काशी में बसने का सपना हो वह बाबा के दर्शन के बाद काल भैरव का दशर्न जरूर करें। काशी के कोतवाल हैं काल भैरव. . . Kashi, the city of Shiva
मुख्य बातें
- काशी विश्वनाथ मंदिर स्थित शिवलिंग बारह ज्योर्तिलिंगों में से एक है
- सावन ही नहीं हर दिन यहां भोले बाबा के दर्शन को रेला लगता है
इतिहास- Kashi, the city of Shiva
इस मंदिर का 3,500 वर्षो का लिखित इतिहास है। इस मंदिर का निर्माण कब किया गया था इसकी
जानकारी तो नहीं है लेकिन इसके इतिहास से पता चलता है कि इस पर कई बार हमले किए गए
लेकिन उतनी ही बार इसका निर्माण भी किया गया। बार-बार के हमलों और पुन: निर्मित किये जाने के
बाद मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण 1780 में इंदौर की महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने
करवाया था। Kashi, the city of Shiva
पौराणिक कथा-
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिग के संबंध में भी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार जब भगवान शंकर पार्वती जी से विवाह करने के बाद कैलाश पर्वत रहने लगे तब पार्वती जी इस बात से नाराज रहने लगीं। उन्होंने अपने मन की इच्छा भगवान शिव के सम्मुख रख दी।
अपनी प्रिया की यह बात सुनकर भगवान शिव कैलाश पर्वत को छोड़ कर देवी पार्वती के साथ काशी नगरी में आकर रहने लगे। इस तरह से काशी नगरी में आने के बाद भगवान शिव यहां ज्योतिर्लिग के रूप में स्थापित हो गए। तभी से काशी नगरी में विश्वनाथ ज्योतिर्लिग ही भगवान शिव का निवास स्थान बन गया।
माना यह भी जाता है कि काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिग किसी मनुष्य की पूजा, तपस्या से प्रकट नहीं हुआ, बल्कि यहां निराकार परमेश्वर ही शिव बनकर विश्वनाथ के रूप में साक्षात प्रकट हुए।
Kashi, the city of Shiva
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