मुल्क में वह दौर चल पड़ा है कि हिंदुओं के साथ लूटमार हो रही है और बलात्कार के मामलात भी बढ़ रहे हैं. अफसोस है कि गुहार के बावजूद कायदा-ओ-कानून इस ओर नजर नहीं कर रहा है. जिसे अपना घर समझा वह अब रहने लायक नहीं. लिहाजा मैं जोगेंद्र नाथ मंडल अपने श्रम और कानून मंत्री के पद से इस्तीफा देता हूं.
अब पहले जानते हैं, कौन हैं जोगेंद्र नाथ मंडल Jogendra Nath Mandal
साल 1904 में जोगेंद्रनाथ का जन्म ब्रिटिश भारत के बंगाल प्रेसिडेंसी में हुआ था. माना जाता है कि नमूसूरा समुदाय से आते हैं, जिसे हिंदू जाति व्यवस्था में अपनी स्थिति का दावा करने के लिए आंदोलन करना पड़ा था. मंडल ने 1937 के भारतीय प्रांतीय विधानसभा चुनाव में एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में अपनी राजनीतिक पारी शुरू की.
उन्होंने बखरागंज उत्तर पूर्व ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र को बंगाल विधान सभा में एक सीट पर चुनाव लड़ा और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की जिला समिति के अध्यक्ष सरकल कुमार दत्ता को धूल चटाई थी. इसके बाद आजादी से पहले भारतीय राजनीति में काफी सकिय रहे और बंगाल में मुख्य रूप से दलित चिंतक बन कर उभरे. इसी से पहचाने भी गए.
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मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान की मांग की थी और तमाम जद्दोजहद के बाद बंटवारे पर मुहर लग चुकी थी. जिन्ना को अलग हुए मुल्क में एक ऐसे भरोसेमंद शख्स की जरूरत थी जो कि उनके हाथ के नीचे भी रहे और नए मुल्क के कायदे-कानून भी बना सके. 1946 में चुनाव के ब्रिटिशराज में अंतिम सरकार बनी तो कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने अपने प्रतिनिधियों को चुना जो कि मंत्री के तौर पर सरकार में काम करेंगे. मुस्लिम लीग ने जोगेंद्र नाथ मंडल का नाम भेजा था.
जिन्ना को जोगेंद्र नाथ मंडल पर भरोसा था. वो मुहम्मद अली जिन्ना के काफी करीबी थे इसकी एक वजह यह भी थी कि 1946 में जब बंगाल में दंगे हुए थे तो मंडल ने दलितों को मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा में भाग न लेने का आग्रह किया था. इसी भरोसे का नतीजा रहा कि पाकिस्तान बना तो मंडल कानून और श्रम मंत्री बनाए गए.
एक और दिलचस्प बात, जो बांग्लादेश से जुड़ी है
तब के असम का एक हिस्सा था सिलहट. जब पाकिस्तान बन रहा था तो 3 जून 1947 को सिलहट को तय करना था कि वह किस मुल्क की सीमा में रहेगा. इसके लिए जनमत संग्रह होना था. इस इलाके में बराबर-बराबर हिंदू-मुस्लिम थे. जिन्ना ने मंडल को यहां भेजा, जिन्होंने दलितों का मत पाकिस्तान की ओर दिलवा दिया.
इस तरह जोगेंद्र ने असम के सिलहट को पाकिस्तान में मिला दिया था. इसके बाद सिलहट पाकिस्तान का हिस्सा बना. फिर इंदिरा गांधी ने जब भूगोल बदल दिया तो सिलहट बांग्लादेश में चला गया. है न दिलचस्प. Jogendra Nath Mandal
…लेकिन, मंडल को गलती का अहसास हुआ, इस्तीफा दे दिया Jogendra Nath Mandal
देर से ही सही, लेकिन मंडल को अपनी गलती का अहसास हुआ कि पाकिस्तान का साथ देकर उन्होंने बहुत गलत किया. पाकिस्तान बनने के कुछ वक्त बाद गैर मुस्लिमों को निशाना बनाया जाने लगा. हिंदुओं के साथ लूटमार, बलात्कार के मामले सामने आने लगे. मंडल ने इस विषय पर सरकार को कई खत लिखे लेकिन सरकार ने उनकी एक न सुनी. जोगेंद्र नाथ मंडल को बाहर करने के लिए देशभक्ति को साजिश की जाने लगी. मंडल बहुत आहत हुए, उन्हें विश्वास था पाकिस्तान में दलितों के साथ अन्याय नहीं होगा.
करीबन दो सालों में ही दलित-मुस्लिम एकता का मंडल का ख्वाब टूट गया. जिन्ना की मौत के बाद मंडल 8 अक्टूबर, 1950 को लियाकत अली खान के मंत्रिमंडल से त्याग पत्र दे दिया और भारत आ गए.