Chhatrapati Shivaji : ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक का दिवस है। आइये जानते है कैसे हिन्दू सम्राट हिन्दू ह्रदय सम्राट छत्रपति शिवाजी ने हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की थी | गौरव की उपाधि से अंलकृत पश्चिम में भारतीय गणराज्य के महानायक छत्रपति शिवाजी का जन्म 19 फरवरी ,1630 को पुणे के जुनार स्थित शिवनेरी दुर्ग में शाहजी भोंसले और माता जीजाबाई के घर हुआ | शिवाजी का नाम क्षेत्रीय देवी शिवायी के नाम पर रखा गया था .माता जीजाबाई धार्मिक स्वभाव की वीरांगना नारी थीं, उनकी पहली गुरु थी जो रामायण, महाभारत के साथ शिवाजी को भारतीय वीरों और महापुरुषों की कहानियां सुनाती थी | Chhatrapati Shivaji
दादा कोणदेव के संरक्षण में शिवाजी ने युद्ध कौशल की सारी कलाएं सीखी | शिवाजी को गुरिल्ला युद्ध या छापामार युद्ध का आविष्कारक माना जाता है | शिवाजी के गुरु समर्थ रामदास थे | छत्रपति शिवाजी तुलजा भवानी के उपासक थे | 1645 के आसपास शिवाजी ने अपनी रणनीति से बीजापुर सल्तनत के तहत पुणे के आसपास इनायत खां से तोरण, फिरंगोजी नरसाला से चाकन और आदिलशाह के गवर्नर से कोंडाना किले जीते, इसके साथ ही सिहंगढ़ और पुरंदर के किले भी उनके अधिपत्य में शामिल थे।
शिवाजी का जन्म स्थान , शिवनेरी किला
प्रतापगढ़ के युद्ध में शिवाजी के नेतृत्व में मराठा सेना ने बीजापुर सल्तनत के 3,000 सैनिको को मौत के घाट उतार दिया | बीजापुर सल्तनत के साथ संघर्ष के चलते शिवाजी ,औरंगजेब के निशाने पर आ गए | 1659 में, आदिलशाह ने अपने सबसे बहादुर सेनापति अफज़ल खान को शिवाजी को मारने के लिए भेजा। शिवाजी और अफज़ल खान 10 नवम्बर 1659 को प्रतापगढ़ के किले के पास एक झोपड़ी में मिले। अफज़ल खान ने शिवाजी के ऊपर वार किया लेकिन अपने कवच की वजह से वह बच गए, और फिर शिवाजी ने अपने बाघ नख (Tiger’s Claw) से अफज़ल खान पर हमला कर दिया। हमला इतना घातक था कि उसकी मृत्यु हो गई।
औरंगजेब ने अपने मामा शाइस्ता खान को शिवाजी पर आक्रमण करने के लिए भेजा। शाइस्ता खान के हमले के बाद शिवाजी को अपने कई किले गंवाने पड़े, लेकिन कुछ समय बाद शिवाजी ने प्रतिकार किया और मुगल व्यापार के प्रमुख केंद्र सूरत बंदरगाह को कब्जे में ले लिया11 जून 1665 को शिवाजी और औरंगजेब के प्रतिनिधि जयसिंह के बीच पुरंदर की संधि हुई | इसके अंतर्गत शिवाजी ने 23 किले और 4 लाख की राशि मुग़ल शासक औरंगजेब को दी | Chhatrapati Shivaji
औरंगजेब ने शिवाजी को आगरा बुला लिया उद्देश्य था उनकी सैन्य क्षमता से अफगानिस्तान तक मुग़ल सत्ता का विस्तार करना, शिवाजी अपने 8 वर्षीय बेटे संभाजी के साथ औरंगजेब के दरबार में गए , उन्होंने आत्मसम्मान के लिए औरंगजेब का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया तो औरंगजेब ने 5000 सैनिकों के पहरे में उन्हे नज़रबंद कर दिया, अपनी बुद्धिमता से वे 17 अगस्त 1666 को संभाजी सहित औरंगजेब की कैद से मुक्त हो गए | Chhatrapati Shivaji
1670 में अंग्रेजों द्वारा शिवाजी की सेना को युद्ध सामग्री बेचने से इनकार करने के चलते बंबई में धावा बोला, यह संघर्ष 1971 तक चला | जब अंग्रेजो ने डांडा – राजपुरी के आक्रमण में समर्थन से इंकार कर दिया तो उन्होंने राजापुर में अंग्रेजों की फैक्ट्री को लूट लिया | 6 जून 1674 को रायगढ़ में उनका राज्यरोहण समारोह हुआ | शिवाजी के नेतृत्व में मराठों ने दक्खन के सभी राज्यों को एकीकृत हिन्दू साम्राज्य के अधीन स्थापित किया | उन्होंने खानदेश ,बीजापुर , कारवार , कोल्कापुर , जांजिरा , रामनगर और बेलगाम आदि रियासतों के साथ वेल्लोर और जिंजी पर भी अधिपत्य स्थापित किया। तंजावुर और मैसूर भी उन्ही के अधीन थे |
अपने अधीन आने वालो किलों के नाम उन्होंने संस्कृत भाषा में रखे | वह एक प्रखर हिन्दू शासक थे लेकिन उन्होंने सभी के प्रति सहिष्णुता दिखाई | शिवाजी ने महिलाओ को सम्मान दिया , वे जाति प्रथा के घोर विरोधी थे उन्होंने किसानों और सरकार के बीच से बहुत समय से प्रचलित आढ़ती व्यवस्था को हटाकर राजस्व संग्रह करने के लिए रैयतवाडी व्यवस्था प्रारंभ की | छत्रपति शिवाजी की शासन प्रणाली अष्टप्रधान चलाते थे, इनमें मंत्रियों का प्रधान-पेशवा ,वित्त और राजस्व के प्रमुख-अमात्य, राजा के दैनंदिन कार्यों का सहायक-मंत्री, दफ्तरी कार्य का प्रमुख-सचिव, विदेश मामलों का प्रमुख-सुमंत, सेना का प्रधान-सेनापति, दान व धार्मिक मामलों का प्रमुख-पंडितराज और न्याय मामलों का प्रमुख-न्यायधीश आदि प्रमुख थे। Chhatrapati Shivaji
शिवाजी हिन्दू धर्म व परंपरा के प्रबल पक्षधर थे इसलिए उनके प्रत्येक अच्छे कार्य व अभियान का श्रीगणेश दशहरे के अवसर पर होता था..शिवाजी ने अपने 350 मावल योद्धाओं को लेकर औरंगजेब के मामा शाइस्ता खान पर धावा बोला था जिसमें वह खिड़की से कूदकर जान तो बचा गया लेकिन उसकी चार उंगलियां कट गयीं| शिवाजी ने काफी कुशलता से अपनी सेना को खड़ा किया था। उनके पास एक विशाल नौसेना (Navy) भी थी। जिसके प्रमुख मयंक भंडारी थे। शिवाजी ने अनुशासित सेना तथा सुस्थापित प्रशासनिक संगठनों की मदद से एक निपुण तथा प्रगतिशील सभ्य शासन स्थापित किया। उन्होंने सैन्य रणनीति में नवीन तरीके अपनाएं जिसमें दुश्मनों पर अचानक आक्रमण करना जैसे तरीके शामिल थे
शिवाजी महाराज ने समयानुसार समाज में जो जो परिवर्तन होना चाहिये वह सोचकर परिवर्तन किया, बेधडक किया। नेताजी पालकर को वापस हिंदू बना लिया, बजाजी निंबालकर को फिर से हिंदू बना लिया। केवल बना ही नहीं लिया उन को समाज में स्थापित करने के लिये उन से अपना रिश्ता जोड दिया। विवेक था। दृष्टि थी। तलवार के बल पर इस्लामीकरण हो रहा था। शिवाजी महाराज की दृष्टि क्या थी? विदेशी मुसलमानों को चुन चुन कर उन्होंने बाहर कर दिया। अपने ही समाज से मुस्लिम बने समाज के वर्ग को आत्मसात करने हेतु अपनाने की प्रक्रिया उन्होंने चलायी। कुतुबशाह को अभय दिया। लेकिन अभय देते समय यह बताया की तुम्हारे दरबार में जो तुम्हारे पहले दो वजीर होंगे वे हिंदू होंगे। उसके अनुसार व्यंकण्णा और मादण्णा नाम के दो वजीर नियुक्त हुए और दूसरी शर्त ये थी की हिंदू प्रजा पर कोई अत्याचार नहीं होगा। Chhatrapati Shivaji
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पुर्तगाली गवर्नर और पुर्तगाली सेना की शह पर मतांतरण करने मिशनरी आये हैं ये समझते ही गोवा पर चढ गये। इन को हजम करना है इस का मतलब, अपने धर्म के बारे में ढुलमुल नीति नहीं। सीधा आक्रमण किया। चिपळूण के पास गये। परशुराम मंदिर को फिर से खडा किया। औरंगजेब के आदेश से, तब काशी विश्वेश्वर का मंदिर टूटा था। औरंगजेब को पत्र लिखा कि तुम राजा बने हो, दैवयोग से और ईश्वर की कृपा से। और ईश्वर की आँखों में सारी प्रजा समान है। ईश्वर हिंदु मुसलमान ऐसा भेद नहीं करता। तुम न्याय से उसका प्रतिपालन करो, तुम अगर हिंदूंओं के मंदिर तोडने जैसे कारनामे करोगे तो मेरी तलवार लेकर मुझे उत्तर में आना पडेगा।
शिवाजी महाराज , औरंगाबाद
शिवाजी महाराज का राज्य वहाँ नहीं था। शिवाजी महाराज का राज्य बहुत छोटा था। दक्षिण में था। शिवाजी महाराज के जीवन काल में वह राज्य काशी तक जायेगा ऐसी भविष्यवाणी कोई कर नहीं सकता था। फिर भी शिवाजी महाराज ने यह पत्र लिखा क्यों कि काशी विश्वेश्वर हमारे राष्ट्र का श्रद्धास्थान है। यह मेरा राष्ट्र कार्य है। लेकिन ऐसा करते समय जो मुसलमान बन गये है उनका क्या करना? प्रेम से जोडो। बने तक वापस लाओ। ये सारी दृष्टि उन की करनी में थी।
समय कहाँ जा रहा है और क्या करना चाहिये इसकी अद्भुत दृष्टि उनके पास थी और इसलिये यूरोप से मुद्रण करनेवाला, एक यंत्र, पुराना कीले लगाकर छाप करने वाला, उस को मंगवाकर, उसका अध्ययन करते हुए वैसा यंत्र बनाने का प्रयास, मुद्रण कला शुरू करने का प्रयास उन्होंने करवाया। विदेशियों से अच्छी तोपें, अच्छी तलवारें ली और वैसी तोपें, वैसी तलवार अपने यहां बने इसकी चिंता की। उन्होंने स्वराज्य की सुरक्षा के लिये एक बहुत पक्का सूचना तंत्र गुप्तचरों के सुगठित व्यापक जाल के माध्यम से खडा किया था।
सागरी सीमा अपने देश की सुरक्षा है, वहाँ से ही आक्रमण के लिये सीधा रास्ता हो सकता है, क्योंकि अब पानी के जहाज बन गये है तो अपना भी नौदल चाहिये। उन्होने अपने नौदल का गठन किया। विदेशियों की नौ निर्माण कला और अपने ग्रंथों की नौ निर्माण कला की तुलना करते हुए अपने देश के अनुकूल नई नौ निर्माण कला का विद्वानों से सृजन कराया, और वैसे जहाज बनवाये। सिन्धुदुर्ग, सुवर्णदुर्ग, पद्मदुर्ग, विजयदुर्ग ऐसे जलदुर्ग बनवाये। कितनी व्यापक दृष्टि होगी और कहाँ तक देखते होंगे। वे केवल उस समय का विचार नहीं करते थे। मात्र एक सुलतान को पराजित कर अपना स्वराज्य बनाना केवल इतना नहीं। यह शब्द वे केवल बोले नहीं है, उनकी कृति बता रही है। कितने ही ऐसे उदाहरण हैं…
शिवाजी महाराज के द्वारा संपूर्ण राष्ट्र के लिये किये गये प्रयासों की, यह राज्याभिषेक सफल परिणति है और इसलिये इसको हम शिवसाम्राज्य दिन नहीं कहते। इसको हम कहते है हिंदू साम्राज्य दिवस। व्यक्ति के रूप में सगुण आदर्श के नाते छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन का प्रत्येक अंश हमारे लिये दिग्दर्शक है। उस चरित्र की, उस नीति की, उस कुशलता की, उस उद्देश्य के पवित्रता की आज आवश्यकता है। इस को समझकर ही अपने संघ ने ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी को, शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के दिन को हिंदू साम्राज्य दिवस निश्चित किया है। इसीलिये आज की जैसी परिस्थिति में शिवाजी महाराज के कर्तृत्व, उनके गुण, उनके चरित्र के द्वारा मिलनेवाला दिग्दर्शन हमारे लिए मार्गदर्शक है। आज भी अपने लिये अनुकरणीय है।