इस्लाम केसे फेला ?
आरम्भ में ये सुल्तान सहिष्णु रहे लेकिन हमादान से आए शाह हमादान के समय में शुरू हुआ इस्लामीकरण सुल्तान सिकन्दर के समय अपने चरम पर पहुंच गया। इस काल में हिन्दू लोगों को इस्लाम कबूल करना पड़ा और इस तरह धीरे-धीरे कश्मीर के अधिकतर लोग मुसलमान बन गए जिसमें जम्मू के भी कुछ हिस्से थे। उल्लेखनीय है कि जम्मू का एक हिस्सा पाकिस्तान के अधिन है, जिसमें कश्मीर का हिस्सा अलग है। History of Kashmir Hindi
शाह हमादान के बेटे मीर हमदानी के नेतृत्व में मंदिरों को तोड़ने और तलवार के दम पर इस्लामीकरण का दौर सिकन्दर के बेटे अलीशाह तक चला लेकिन उसके बाद 1420-70 में ज़ैनुल आब्दीन (बड शाह) गद्दी पर बैठा। इसका शासन अच्छा रहा।
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मुग़ल शासकों का आक्रमण
16 अक्टूबर 1586 को मुगल सिपहसालार कासिम खान मीर ने चक शासक याकूब खान को हराकर कश्मीर पर मुगलिया सल्तनत को स्थापित किया। इसके बाद अगले 361 सालों तक घाटी पर गैर कश्मीरियों का शासन रहा जिसमें मुगल, अफगान, सिख, डोगरे आदि रहे। मुगल शासक औरंगजेब और उसके बाद के शासकों ने हिन्दुओं के साथ-साथ यहां शिया मुसलमानों पर दमनकारी नीति अपनाई जिसके चलते हजारों लोग मारे गए। History of Kashmir Hindi
मुगल वंश के पतन के बाद 1752-53 में अहमद शाह अब्दाली के नेतृत्व में अफगानों ने कश्मीर (जम्मू और लद्दाख नहीं) पर कब्जा कर लिया। अफगानियों मुसलमानों ने कश्मीर की जनता (मुस्लिम, हिन्दू आदि सभी) पर भयंकर अत्याचार किए। उनकी स्त्री और धन को खूब लूटा। यह लूट और खोसट का कार्य पांच अलग-अलग पठान गवर्नरों के राज में जारी रहा। 67 साल तक पठानों ने कश्मीर घाटी पर शासन किया।
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हरी सिंह नलवा का राज्याभिषेक
इन अत्याचारों से तंग आकर एक कश्मीरी पंडित बीरबल धर ने सिख राजा रणजीत सिंह से मदद मांगी। उन्होंने अपने उत्तराधिकारी खड़क सिंह के नेतृत्व में हरि सिंह नलवा सहित अपने सबसे काबिल सरदारों के साथ तीस हजार की फौज रवाना की। आज़िम खान अपने भाई जब्बार खान के भरोसे कश्मीर को छोड़कर काबुल भाग गया, इस तरह 15 जून 1819 को कश्मीर में सिख शासन की स्थापना हुई। 1839 में रणजीत सिंह की मौत के साथ लाहौर का सिख साम्राज्य बिखरने लगा. अंग्रेज़ों के लिए यह अफगानिस्तान की ख़तरनाक सीमा पर नियंत्रण का मौक़ा था तो जम्मू के राजा गुलाब सिंह के लिए खुद को स्वतंत्र घोषित करने का।
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एक सूची यह भी पाई जाती है जो जम्मू के राजाओं की है:
हिन्दू राजा | समय |
राय सूरज देव | 850-920 |
राय भोज देव | 920-987 |
राय अवतार देव | 987-1030 |
राय जसदेव | 1030-1061 |
राय संग्राम देव | 1061-1095 |
राय जसास्कर | 1095-1165 |
राय ब्रजदेव | 1165-1216 |
राय नरसिंहदेव | 1216-1258 |
राय अर्जुनदेव 1258-1313 | 1258-1313 |
राय जोधदेव 1313-1361 | 1313-1361 |
राय मलदेव 1361-1400 | 1361-1400 |
राय हमीरदेव (भीमदेव) 1400-1423 | 1400-1423 |
राय अजायब देव राय (1528 तक) | (1528 तक) |
राय कूपर देव 1530-1570 | 1530-1570 |
राय समील देव 1570-1594 | 1570-1594 |
राय संग्राम, जम्मू राजा 1594-1624 | 1594-1624 |
राय भूप देव 1624-1650 | 1624-1650 |
राय हरिदेव 1650-1686 | 1650-1686 |
राय गुजै देव 1686-1703 | 1686-1703 |
राजा ध्रुव देव 1703-1725 | 1703-1725 |
राजा रंजीत देव 1725-1782 | 1725-1782 |
राजा ब्रजराज देव 1782-1787 | 1782-1787 |
राजा संसपूर्ण सिंह 1787-1797 | 1787-1797 |
राजा जीत सिंह 1797-1816 | 1797-1816 |
राजाकिशोर सिंह 1820-1822 | 1820-1822 |
जम्मू और कश्मीर के महाराजा- | |
महाराजा गुलाब सिंह | 1822-1856 |
महाराजा रणबीर सिंह | 1856-1885 |
महाराजा हरि सिंह 1925 से 1947 तक। | 1925-1947 |
* जम्मू 22 पहाड़ी रियासतों में बंटा हुआ था। डोगरा शासक राजा मालदेव ने कई क्षेत्रों को जीतकर अपने विशाल राज्य की स्थापना की। सन् 1733 से 1782 तक राजा रंजीत देव ने जम्मू पर शासन किया किंतु उनके उत्तराधिकारी दुर्बल थे, इसलिए महाराजा रणजीत सिंह ने जम्मू को पंजाब में मिला लिया।
* सुदूर उत्तर में कश्मीर के महाराजा की सत्ता कराकोरम पर्वत श्रेणी तक फैली हुई थी। उत्तर में अक्साई चिन और लद्दाख भी इस राज्य के अंतर्गत था।
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*1947 में जम्मू और कश्मीर पर डोगरा शासकों का शासन रहा। इसके बाद महाराज हरि सिंह ने 26 अक्तूबर 1947 को भारतीय संघ में विलय के समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए। जम्मू-कश्मीर रियासत का विलय देश की नई प्रशासनिक व्यवस्था में अंग्रेजों के चले जाने के लगभग 2 महीने बाद 26 अक्तूबर 1947 को हुआ। वह भी तब, जब रियासत पर कबायलियों के रूप में पाकिस्तानी सेना ने आक्रमण कर दिया और उसके काफी हिस्से पर कब्जा कर लिया।