History of chamar : डॉ विजय सोनकर शास्त्री के अनुसार इस्लामिक आक्रमणकारियों के काल में चवर वंश का शासन भारत के पश्चिम भाग में था और इसके राजा चवरसेन थे | इस क्षत्रिय वंश के राजपरिवार का वैवाहिक संबंध बप्पा रावल वंश के साथ था। राणा सांगा तथा उनकी पत्नी झाली रानी ने चंवरवंश से सम्बन्ध रखने वाले संत रैदास जी को अपना गुरु मानकर उनको मेवाड़ के राजगुरु की उपाधि दी थी और उनसे चित्तौड़ के किले में रहने के लिए कहा था तथा संत रविदास चित्तौड़ किले में कई महीने रहे थे।
उनके महान व्यक्तित्व से प्रभावित होकर बड़ी संख्या में लोगों ने उन्हें अपना गुरु माना राजस्थान में चमार जाति का व्यवहार आज भी राजपूतों जैसा ही है , औरतें लंबा घूंघट रखती हैं और आदमी मूंछे रखते है और पगड़ी भी पहनते है| उस समय संत रविदास जी से इस्लामी शासन घबरा गया और सिकंदर लोदी ने मुल्ला सदना फकीर को संत रविदास को मुसलमान बनाने के लिए भेजा। उसको पता था कि अगर संत रविदास इस्लाम स्वीकार कर लेते हैं तो भारत में इस्लाम का परचम लहराया आसान हो जायेगा |
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लेकिन मुल्ला सदना फकीर शास्त्रार्थ में पराजित हो और उनकी भक्ति से प्रभावित होकर उसने अपना नाम रामदास रखकर वैष्णव हो गया। दोनों साथ मिलकर हिंदू धर्म के प्रचार में लग गए जिसके कारण सिकंदर लोदी ने संत रैदास को कैद कर लिया और उनके अनुयायियों को चमार यानी अछूत चांडाल घोषित कर दिया। उनसे कारावास में चमड़ा पीटने, जूती बनाना, इत्यादि काम जबरदस्ती कराए जाने लगे| संत रविदास पर हो रहे अत्याचारों के प्रति उत्तर में चंवरवंश के क्षत्रियों ने दिल्ली को घेर लिया और सिकन्दर लोदी ने डर कर रविदास जी को छोड़ दिया | history of chamar
डॉ विजय सोनकर शास्त्री के अनुसार प्राचीन काल में ना तो यह शब्द था न इस नाम की कोई जाति थी। ऋग्वेद के दूसरे अध्याय में बुनाई की तकनीक का उल्लेख जरूर मिलता है। लेकिन बुनाई करने वालों को चमार नहीं कहा जाता था बल्कि तूतूवाये कहा जाता था उनके अनुसार मुस्लिम आक्रंताओ के धार्मिक उत्पीड़न का अहिंसक तरीके से जवाब देने की कोशिश संत शिरोमणि रैदास ने की थी, जिनको सिकंदर लोदी ने बलपूर्वक चमार शब्द से संबोधित किया। history of chamar
Reference : Indiaspeaksdaily