जिहाद का जवाब देना वाला पहला हिन्दू योद्धा-तक्षक

मुल्तान_विजय के बाद कासिम के आतंकवादियों ने एक विशेष सम्प्रदाय हिन्दू के ऊपर गांवो शहरों में भीषण रक्तपात मचाया था हजारों स्त्रियों की छातियाँ नोच डाली गयीं इस कारण अपनी लाज बचाने के लिए हजारों सनातनी किशोरियां अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए कुंए तालाब में डूब मरीं लगभग सभी युवाओं को या तो मार डाला गया या गुलाम बना लिया गया #अरब ने पहली बार भारत को अपने इस्लाम का रूप दिखाया था। एक बालक तक्षक के पिता कासिम की सेना के साथ हुए युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो चुके थे लुटेरी अरब सेना जब #तक्षक के गांव में पहुची तो हाहाकार मच गया। स्त्रियों को घरों से खींच खींच कर उनकी आबरू लूटी जाने लगी भय से आक्रांत तक्षक के घर में भी सब चिल्ला उठे तक्षक और उसकी दो बहनें भय से कांप उठी थीं। तक्षक की माँ पूरी परिस्थिति समझ चुकी थी उसने कुछ देर तक अपने बच्चों को देखा और जैसे एक निर्णय पर पहुच गयी माँ ने अपने तीनों बच्चों को खींच कर छाती में चिपका लिया और रो पड़ी। फिर देखते देखते उस #क्षत्राणी ने म्यान से तलवार खीचा और अपनी दोनों बेटियों का सर काट डाला उसके बाद अरबों द्वारा उनकी काटी जा रही गाय की तरफ और बेटे की ओर अंतिम दृष्टि डाली और तलवार को अपनी छाती में उतार लिया।

आठ वर्ष का बालक तक्षक एकाएक समय को पढ़ना सीख गया था, उसने भूमि पर पड़ी मृत माँ के आँचल से अंतिम बार अपनी आँखे पोंछी और घर के पिछले द्वार से निकल कर खेतों से होकर जंगल में भाग गया। पचीस वर्ष बीत गए। अब वह बालक बत्तीस वर्ष का पुरुष हो कर कन्नौज के प्रतापी शासक नागभट्ट द्वितीय का मुख्य अंगरक्षक था। वर्षों से किसी ने उसके चेहरे पर भावना का कोई चिन्ह नही देखा था वह न कभी खुश होता था न कभी दुखी। उसकी आँखे सदैव प्रतिशोध की वजह से अंगारे की तरह लाल रहती थीं उसके पराक्रम के किस्से पूरी सेना में सुने सुनाये जाते थे अपनी तलवार के एक वार से हाथी को मार डालने वाला तक्षक सैनिकों के लिए आदर्श था कन्नौज नरेश नागभट्ट अपने अतुल्य पराक्रम से अरबों के सफल प्रतिरोध के लिए ख्यात थे सिंध पर शासन कर रहे अरब कई बार कन्नौज पर आक्रमण कर चुके थे पर हर बार योद्धा राजपूत उन्हें खदेड़ देते युद्ध के सनातन नियमों का पालन करते नागभट्ट कभी उनका पीछा नहीं करते, जिसके कारण मुस्लिम शासक आदत से मजबूर बार बार मजबूत हो कर पुनः आक्रमण करते थे। ऐसा पंद्रह वर्षों से हो रहा था। फिर से सभा बैठी थी, अरब के खलीफा से सहयोग लेकर सिंध की विशाल सेना कन्नौज पर आक्रमण के लिए प्रस्थान कर चुकी है, और संभवत: दो से तीन दिन के अंदर यह सेना कन्नौज की सीमा पर होगी इसी सम्बंध में रणनीति बनाने के लिए महाराज नागभट्ट ने यह सभा बैठाई थी सारे सेनाध्यक्ष अपनी अपनी राय दे रहे थे।

तभी अंगरक्षक तक्षक उठ खड़ा हुआ “और बोला- महाराज, हमे इस बार दुश्मन को उसी की शैली में उत्तर देना होगा।” महाराज ने ध्यान से देखा अपने इस अंगरक्षक की ओर, बोले- “अपनी बात खुल कर कहो तक्षक, हम कुछ समझ नही पा रहे।” “महाराज, अरब सैनिक महाबर्बर हैं उनके साथ सनातन नियमों के अनुरूप युद्ध कर के हम अपनी प्रजा के साथ घात ही करेंगे। उनको उन्ही की शैली में हराना होगा।” महाराज के माथे पर लकीरें उभर आयीं, बोले- “किन्तु हम धर्म और मर्यादा नही छोड़ सकते सैनिक। ” तक्षक ने कहा-
“मर्यादा का निर्वाह उसके साथ किया जाता है जो मर्यादा का अर्थ समझते हों ये बर्बर धर्मोन्मत्त राक्षस हैं महाराज इनके लिए हत्या और बलात्कार ही धर्म है।” “पर यह हमारा धर्म नही हैं बीर”राजा का केवल एक ही धर्म होता है महाराज, और वह है प्रजा की रक्षा देवल और मुल्तान का युद्ध याद करें महाराज, जब कासिम की सेना ने दाहिर को पराजित करने के पश्चात प्रजा पर कितना अत्याचार किया था ईश्वर न करे, यदि हम पराजित हुए तो बर्बर अत्याचारी अरब हमारी स्त्रियों, बच्चों और निरीह प्रजा के साथ कैसा व्यवहार करेंगे, यह महाराज जानते हैं।” महाराज ने एक बार पूरी सभा की ओर निहारा, सबका मौन तक्षक के तर्कों से सहमत दिख रहा था। महाराज अपने मुख्य सेनापतियों मंत्रियों और तक्षक के साथ गुप्त सभाकक्ष की ओर बढ़ गए। अगले दिवस की संध्या तक कन्नौज की पश्चिम सीमा पर दोनों सेनाओं का पड़ाव हो चूका था, और आशा थी कि अगला प्रभात एक भीषण युद्ध का साक्षी होगा।

आधी रात्रि बीत चुकी थी। अरब सेना अपने शिविर में निश्चिन्त सो रही थी अचानक तक्षक के संचालन में कन्नौज की एक चौथाई सेना अरब शिविर पर टूट पड़ी अरबों को किसी हिन्दू शासक से रात्रि युद्ध की आशा न थी। वे उठते,सावधान होते और हथियार सँभालते इसके पुर्व ही आधे अरब गाजर मूली की तरह काट डाले गए। इस भयावह निशा में तक्षक का शौर्य अपनी पराकाष्ठा पर था वह घोडा दौड़ाते जिधर निकल पड़ता उधर की भूमि शवों से पट जाती थी आज माँ और बहनों की आत्मा को ठंडक देने का समय था | उषा की प्रथम किरण से पुर्व अरबों की दो तिहाई सेना मारी जा चुकी थी सुबह होते ही बची सेना पीछे भागी, किन्तु आश्चर्य महाराज नागभट्ट अपनी शेष सेना के साथ उधर तैयार खड़े थे दोपहर होते होते समूची अरब सेना काट डाली गयी। अपनी बर्बरता के बल पर विश्वविजय का स्वप्न देखने वाले आतंकियों को पहली बार किसी ने ऐसा उत्तर दिया था।

विजय के बाद महाराज ने अपने सभी सेनानायकों की ओर देखा, उनमे तक्षक का कहीं पता नही था।सैनिकों ने युद्धभूमि में तक्षक की खोज प्रारंभ की तो देखा-लगभग #हजार अरब सैनिकों के शव के बीच तक्षक की मृत देह दमक रही थी उसे शीघ्र उठा कर महाराज के पास लाया गया कुछ क्षण तक इस अद्भुत योद्धा की ओर चुपचाप देखने के पश्चात महाराज नागभट्ट आगे बढ़े और तक्षक के चरणों में अपनी तलवार रख कर उसकी मृत देह को प्रणाम किया युद्ध के पश्चात युद्धभूमि में पसरी नीरवता में भारत का वह महान सम्राट गरज उठा-“आप आर्यावर्त की वीरता के शिखर थे #तक्षक भारत ने अबतक मातृभूमि की रक्षा में प्राण न्योछावर करना सीखा था आप ने मातृभूमि के लिए प्राण लेना सिखा दिया। भारत युगों युगों तक आपका आभारी रहेगा।” इतिहास साक्षी है इस युद्ध के बाद अगले तीन शताब्दियों तक अरबों में भारत की तरफ आँख उठा कर देखने की हिम्मत नही हुई। तक्षक ने सिखाया कि मातृभूमि के लिए प्राण दिए ही नही लिए भी जाते हैं

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4 comments

  1. इस कहानी को पढ़कर ऐसा लग रहा जैसे देश के इतिहासकार बहुत कुछ छुपा रहे है।

  2. jitender mishra we proud him.. .. n

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