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सम्पूर्ण हिन्दू योद्धाओं कि गौरव गाथा जिसने इस्लाम को भारत में हराया |

वैदिक सभ्यता और धार्मिक भारत के  1400 वर्षों की कहानी संघर्ष और लड़ाई से भरी हुई है और इस्लामी बर्बरता के खिलाफ जवाबी हमलो से भरी पड़ी है ,जो काफी महंगे भी साबित हुए।

हिंदू धर्म अपने अनुयायियों द्वारा जीती गई जीत मातृभूमि की रक्षा के लिए खून बहाने वाले वीरो के बलिदान पर जीवित रहा.

हमारी पाठ्यपुस्तकों में पढ़ाये अनुसार क्या इन मुस्लिम आक्रमणकारियों ने पुरे भारत पर राज्य किया ? क्या मुस्लिम शासन पुरे भारतवर्ष में फैला ? क्या हम हमेशा हारते ही रहे ? क्या हमारे शासक बिना लड़े ही समर्पण कर दिया करते थे ?

नहीं !

क्या हमारे पूर्वजो ने इनका कड़ा मुकाबला किया और कई बार विजय भी हासिल की ??

जी हा !

जी हा ! असली ,वास्तविक ,सच्ची ऐतिहासिक गाथा कुछ और ही चित्रणों से भरी है !

और वह इतिहास जो हमे स्कूलों में पढ़ाया जाता है , वह हमारे पूर्वजो के शौर्य ,धरोहर को छुपाता है !

जब आठवीं सदी में सिंध के सुभेदार जुनैद ने कलिफ हिशाम के आदेश पर कश्मीर में आक्रमण किया था ,तब कश्मीर के शासक सम्राट ललितादित्य मुक्तापीड़ थे।

कश्मीर सम्राट ने जुनैद को हरा दिया और अरबो का कश्मीर जितने का सपना तोड़ दिया। ललितादित्य मुक्तापीड़ा ने भी तुर्कों प्रदेशों पर आक्रमण करके उनको अपने अधीन कर लिया।
11 वीं शताब्दी में कश्मीर के राजा समग्रंराजा ने गजनी के महमूद के कई हमलों को खदेड़ दिया था।

लुटेरा महमूद कभी भी कश्मीरी राजाओ को नहीं हरा पाया।

इसके अलावा राजा समग्रराजा ने काबुल के हिन्दू राजा त्रिलोचनपाल की ग़जनी के महमूद के खिलाफ लड़ने में सैन्य मदत की थी। इन दोनों ने मिलकर सुल्तान महमूद को पराजित किया था।

भारतीय राजाओ का एक सबसे बड़ा गठबंधन तैयार हुआ था जब अरब आठवीं सदी के समय लूट पात करते समय उज्जैन तक पहुंच गए थे।

यह लड़ाई इमरान जुनैद नेतृत्व में अरब सेना और गुर्जर प्रतिहार राजा नागभट के नेतृत्व में भारतीय राजवंशों के गठबंधन के बीच लड़ी गई थी। इस गठबंधन में गुर्जर प्रतिहार ,चालुक्य ,राष्ट्रकूट ,गुहिल इत्यादि राज्य शामिल थे। इन दोनों सेनाओ में काफी युद्ध लड़े गए।

अंतिम युद्ध  738 AD में राजस्थान के सीमा पर लढा गया था ,जिसमे हिन्दुओ का नेतृत्व बाप्पा रावल ने किया था। उस समय अरबी सेना १० गुना बड़ी होने के बावजूद हिन्दू सेना ने उन्हें पराजित कर दिया था !!!

इस युद्ध के बाद कुछ वर्षो / शतकों तक मुल्सिम आक्रमणकारियों ने भारत पर आक्रमण करने की हिम्मत ही नहीं की।

सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने भी तराइन के ११९२ की लड़ाई में हरने से पहले कई बार मुहम्मद घोरी को पराजित कर जीवनदान दिया था। उन्होंने पच्चीस साल के कालखंड में कई मुस्लिम्म आक्रमणकारियों को पराजित किया था और खदेड़ा था।

1203 AD में आसाम के राजा पृथु ने बख्तियार खिलजी ( जिसने नालंदा जलाई थी) को पराजित किया था। पृथु ने इस युद्ध में खिलजी को मरणासन्न कर छोड़ा था। इन असामी अहोम शासको ने इन आक्रमणों से निपटने के लिए पहले ही सुसज्जित सेना तैयार राखी थी,और कई बार मुस्लिम आक्रमणकारियों को हराया भी।

१५२७ AD में रुकुनुद्दीन रुकूँ खान ,बंगाल के सुल्तान के सेनापति ने जब कामरूप पर आक्रमण किया ,तब भी अहोम सेनाओ ने उसे खदेड़ दिया था। उस समय कामरूप के राजा महाराज विस्वा सिंह थे। रुकूँ खान की हर की खबर सुनने के बाद ,सुल्तान ने एक हज़ार घोड़े और दस हज़ार पैदल सिपाहियों को सरदार मिट माणिक के नेतृत्व में अहोमो पर आक्रमण करने भेजा। अहोमो ने इस बार फिर उन्हें खदेड़ा ,साथ में सरदार मिट माणिक को भी बंदी बना लिय.

और अहोम सेनापति लाचित बोर्फुकन की प्रसिद्द मुगलो के विरुद्ध की १६७१ की सराईघाट युद्ध की विजयी शौर्यगाथा तो आसाम के बच्चे बच्चे को मालूम है !

लाखो हिन्दुओ का बर्बरता से क़त्ल करने वाला ,हमारे मंदिरो को ध्वस्त करने वाला,और सम्पत्तियो को लूटने वाला मुस्लिम आक्रमणकारी तैमूर -लंग किसे नहीं पता ? ये सब उसने इंदु नदी पार करके अटॉक से होते हुए दिल्ली समय लिया था !

लेकिन क्या आप जानते है की उसकी आगे की मुहीम असफल हुई थी ?? जाट ,अहीर ,वाल्मीकि ,पहाड़ी भिल्ल ऐसे कई समुदायों की सेनाओ की एकत्र ८०००० के लगभग फौजो ने तैमूर पर आक्रमण करके ,उसकी सेना का नाश करके मेरठ ,हरिद्वार वाला उत्तर भारतीय भाग तैमूर के लूटपात और अत्याचारों से बचा लिया था !इस गठबंधन का श्रेय देवपाल नामक एक जट सरदार को जाता है !

महाबली जोगराज सिंह गुर्जर महा सेनापति थे जबकि 20 वर्षीय रामप्यारी गुर्जर 40,000 महिला योद्धाओं की सेनापति थीं।

एक साथ, पुरुष और महिला योद्धाओं ने 1398 में मेरठ और हरिद्वार में तैमूर पर कहर बरसाया , जिससे वह भारत से भाग गए।

गढ़वाल पर हमला करने के लिए 1640 में शाहजहाँ द्वारा भेजी गई मुगल सेना अभियान में असफल रही.रानी कर्णावती ने उन्हें बुरी तरह पराजित किया।उन्होंने जीवित मुग़ल सैनिकों की नाक भी काट दी, जिसके कारण उन्हें नक-कट रानी कहा जाता था ।उनके क्रूर और निर्दयी रुख ने मुगलों को भयभीत कर दिया और वे गढ़वाल को कभी नहीं जीत सके।

इसी तरह, अकबर के समकालीन, रानी भवानीशंकरी ने हर परिवार के एक सैनिक को भर्ती करना अनिवार्य कर दिया था। वह बंगाल के भूरीश्रेष्ठ नामक जगह की शासक थी ।उन्होंन तीन बार पठान सुल्तान को हराया था । यहाँ तक कि अकबर ने भी उनकी संप्रभुता में कभी हस्तक्षेप नहीं किया ।

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उड़ीसा के नरसिम्हदेव ने कोणार्क मंदिर का निर्माण मुस्लिम शासकों के खिलाफ अपनी विजय के बाद किया था ।बंगाल का सुल्तान हमला करे ,इससे पहले ही उन्होंने बंगाल सल्तनत के क्षेत्रों पर हमला कर जीत लिया। यह बात १२४८ AD की है।

कपया नायक, एक मुसुनरी नायक, ने दक्षिण में तुगलक को 1336 में वारंगल (तब तेलंगाना) क्षेत्र से बाहर निकाल दिया और हिंदू वर्चस्व स्थापित किया।उन्होंने अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों को भी इस्लामिक आक्रमणकारियों से उनका राज्य वापस जितने में मदद की।

बंगाल के देव वंश के एक प्रत्यक्ष वंशज राजा गणेश ने 1414 में इस्लामिक शासकों से बंगाल के सिंहासन को पुनः प्राप्त किया। २०० वर्षो के मुस्लिम प्रभुत्व को समाप्त कर उन्होंने वह हिन्दू राज्य की पुनर्स्थापना की। रियाज़ -उस -सलातीन नमक फ़ारसी किताब में बंगाल के मुस्लिम इतिहास के बारे में लिखा है ,जिसमे कहा है की गणेश ने शिहाबुद्दीन को मारकर सिहासन जितने के बाद मिथिला के शिवसिंह नमक राजा के साथ मिलके पडोसी सुल्तान इब्राहिम शाह को पराजित किया।

मराठा सेनापति प्रतापराव गुर्जर, पहले पेशवा मोरपंत पिंगले, ने मुगलों के खिलाफ 20,000 सैनिकों की मराठा सेना का नेतृत्व किया, जो कि सलहेर , नासिक 1672 की लड़ाई में 40,000 की संख्या में थे।

इतनी कम सेना और कम गोला बारूद होने के बावजूद भी मराठो ने मुघलो को इस घमासान युद्ध में पराजित किया था !

38 साल की उम्र में  खालसा सेना के सेनापति बाबा बंदा सिंह बहादुर ( लक्ष्मण दास भारद्वाज ) ने मुगल और अन्य इस्लामी ताकतों के खिलाफ पांच लड़ाइया जीतने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसमें सोनीपत, समाना और साढौरा में 1709 में तीन लड़ाइयां और 1710 में छपार चीरी और राहोन में दो लड़ाइयां शामिल थीं।
1710 तक बंदा सिंह बहादुर ने लाहौर के पूर्व में लगभग पूरे पंजाब पर कब्जा कर लिया और इस क्षेत्र में इस्लामी शासन को समाप्त कर दिया।

रानी चेन्नम्मा

केलडी की रानी चेन्नम्मा ने मुगल सम्राट औरंगजेब की सेनाओं के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी।

लड़ाई इसलिए हुई क्योंकि चेन्नम्मा ने छत्रपति शिवाजी के छोटे बेटे राजाराम राजे भोंसले को आश्रय दिया था और जिंजी किले में उनके भागने की व्यवस्था की थी।

उन्होंने मुगलई सेना को हराया और संधि की भीख मांगने पर विवश कर डाला !

यह पहली बार था की मुगलो को किसी भारतीय हिन्दू राजा के आगे संधि की प्रार्थना करनी पड़ी थी। रानी चेनम्मा ने बीजापुर के सुल्तान को भी पराजित किया था।

मैं अब ३ सबसे महत्वपूर्ण युद्धों को यहाँ साझा करुगा ,क्युकी हमारे देशभर के विभिन्न हिन्दू राजाओ के पराक्रमो और कुर्बानियो की कहानिया इतनी साड़ी है की यहा लिख पाना संभव नहीं !

1033 -बहरीच की लड़ाई :

बहराइच की लड़ाई तुर्क आक्रमणकारी सालार मसूद गजनी और 11 वीं शताब्दी में राजा सुखदेव के नेतृत्व में कई भारतीय राजाओं के एक संघ के बीच लड़ी गई थी।

महमूद गजनी के भतीजे, जिसे सालार मसूद गजनी के नाम से जाना जाता है, ने 1031 ईस्वी में 2 00,000 से अधिक की सेना के साथ भारत पर आक्रमण किया।इस आक्रमण का उद्देश्य महमूद गजनी के आक्रमण के जैसा लूट पाट ,मार काट नहीं अपितु भारत में सत्ता स्थापित करना था।

राजा आनंदपाल ब्राह्मण शाही ने इस गज़नी को भारत के हृदय स्थल की ओर बढ़ाने की कोशिश की सियालकोट के राजा, राय अर्जुन द्वारा उनकी मदद की गई थी।लेकिन, यह गठबंधन तुर्क सेना की संख्या के आगे छोटा पड़ गया।आनंदपाल शाही और राय अर्जुन को हराने के बाद, मसूद मालवा और गुजरात की ओर बढ़ा। राजा महिपाल तोमर ने उसे हारने की कोशिश की, लेकिन हार भी गया.उत्तर भारतीय मैदानों में जीत के बाद, मसूद गजनी लखनऊ के पास बहराइच में डेरा डाल कर रुक गया। वह यहां 1033 के मध्य तक रहा.इस बीच, उत्तर भारत के 17 राजाओं ने गठबंधन किया।

यह भारत में आज तक का सबसे बड़ा गठबंधन है।

वे थे राय रायब, राय साहब, राय अर्जुन, राय भीखन, राय कनक, राय कल्याण, राय मकरू, राय सवरू, राय अरण, राय बीरबल, राय जयपाल, राय जयपाल, राय हरपाल, राय हरपाल, राय हकरू, राय प्रभु, राय देव नारायण और राय नरसिंह।
मालवा के राजा भोज ने भी इस लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस परिसंघ के प्रमुख राजा सुहेलदेव थे।

इसके पीछे भी एक बहुत रोचक इतिहास है :

जून 1033 में, हिंदू युद्ध परंपराओं के अनुसार, मसूद गजनी को वैदिक गठबंधन द्वारा सूचित किया गया था कि भूमि हिंदुओं की है औरमसूद को इन जमीनों को खाली करना चाहिए।मसूद ने जवाब दिया कि सारी जमीन खुदा की है और इसलिए वह पीछे नहीं हटेगा।

13 जून, सुबह, लगभग 120,000 की भारतीय सेना ने बहराइच में गजनी शिविर पर आक्रमण किया। मसूद की सेना को पूरी तरह से घेर लिया गया.घंटों तक लड़ाई चलती रही।अंत में, मसूद के शिविर में प्रत्येक व्यक्ति मारा गया। युद्धबंदी नहीं ,माफ़ी नहीं ! बहराइच-गोंड रोड पर आधुनिक बहराइच से लगभग 8 KM दूर एक झील चित्तौरा झील के पास, इस लड़ाई का सटीक स्थान था।
लड़ाई 14 जून को राजा सुहेलदेव और उनके हिंदू गठबंधन के विजय के साथ समाप्त हुई।14 जून 1033 ई। की शाम को, सालार मसूद का राजा सुहेलदेव द्वारा सिर कलम कर दिया गया.

यह जीत काफी शानदार थी। और इसके बाद अगले १६० साल तक किसी उत्तर-पश्चिम के आक्रमणकारी ने आक्रमण करने की हिम्मत नहीं की।’

हल्दीघाटी की लड़ाई , मराठा साम्राज्य , खालसा सेना  Next Page…….

आशा है , आप के लिए हमारे लेख ज्ञानवर्धक होंगे , हमारी कलम की ताकत को बल देने के लिए ! कृपया सहयोग करें

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9 comments

  1. We are proud of our real hero
    Sanatan Sanskrit

  2. दैश आजाद होने के बाद से लेकर आज तक हमारे साथ छल किया गया। नेहरु के द्वारा किया गया नकली हिंदुतव ने आजदेशभागोबाट दिया। हमारे पुर्वजो का इतिहास हमसे अभी तक छिपाया जा रहा है। अब समय आ गया है कि हर हिंदु के लियै यह जानना आवश्यक हे सरकारो को भी चाहिये की हमारी शिक्षा प्रणाली बदलाव करे और हमे अभी तक जो झुठा इतिहास पढाया गया उसे सही करे। जय श्री राम

    • Jay sree ram hum apne baal baccho ko ethass ka guan dengue

    • अति सुंदर जी।
      कम शब्दों में सही इतिहास बताया गया है जो आज तक भारत मे छुपाया गया। मैं इसे कॉपी करना चाहता हूँ लेकिन नहीं हो सका, अगर आप मुझे शब्द शह इसे मेल कर ढें या व्हाट्सएप्प करदे तो आभार होगा जी।
      ईमेल- [email protected]
      whatsapp- 9816188909

  3. दिलीप गुर्जर

    इतिहास गवाह हैं । बस उजागर करना बाकि है।
    इतिहास चोरों को बेनकाब करना बाकि है।

    • INDU BHUSHAN PATHAK

      पूर्वजों के इतिहास को पुनर्जीवित करने के लिए हृदय से आभार व्यक्त कर रहा हूं। इसकी सॉफ्ट कॉपी मुझे व्हाट्सएप करें
      +6281296888864

  4. वीर दुर्गादास राठौर का वर्णन नहीं हे। इतिहास मे हमने उनका योगदान को मुगलौ के विरुद्ध लड़ कर हिंदू राष्ट्र को बनाने मे पूरा जीवन का बलिदान दिया था।

  5. Jai Shree Ram

    Shastra aur shaastra, dono jaroori hai

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