Gopal Patha : गोपालचन्द्र मुखोपाध्याय का जन्म कोलकाता के बाउबाजार में मलंगा लेन के बंगाली हिंदू परिवार में हुआ था। वह क्रांतिकारी अनुकुल चंद्र मुखोपाध्याय के भतीजे थे। बचपन में उसका नाम पट्ठा पड़ गया था क्योंकि उसका परिवार मांस की दुकान चलाता था । अपने व्यवसाय के हिस्से के रूप में, उन्हें नियमित रूप से मुस्लिम व्यापारियों के साथ बातचीत करनी थी। इतिहासकार संदीप बंदोपाध्याय के अनुसार पट्ठा मुसलमानों के खिलाफ नहीं था लेकिन मुस्लिम दंगाइयों ने जब दंगा शुरू किया , तो अपने बचाव के कारण उन्हें हिंसक होना पड़ा | गोपाल ने भारत जातीया बाहिनी की स्थापना की थी जो हिन्दुओं को बंगाल में बचाने के लिए बनाई गई थी | गोपाल नेता जी सुभाषचन्द्र बोस को बहुत मानतें थे और वे मानते थे कि भारत की स्वतन्त्रता के लिए हमें अंग्रेजों से युद्ध करना ही होगा | gopal patha
गोपाल पट्ठा द्वारा मुस्लिम लीग दंगाइयों को करारा जवाब
1946 में मुस्लिम लीग ने 16 अगस्त को ‘डायरेक्ट एक्शन’ द्वारा ताकत के बल पर पाकिस्तान की मांग तेज़ कर दी थी | उस समय बंगाल की मुस्लिम लीग सरकार ने उस दिन सार्वजनिक अवकाश घोषित किया था । कोलकाता जिला मुस्लिम लीग ने कोलकाता मैदान में एक भव्य रैली के लिए एक कार्यक्रम किया जिसमें मुस्लिम लोग हाथ में तलवार लेकर मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर के साथ रैली कर रहे थे | 16 अगस्त की सुबह शहर में पथराव और मारपीट की घटनाएं शुरू हुईं। गोपाल ने इसके बारे में सुना और वह अपने इलाके में वापस चला गया जहाँ उसने मुस्लिम लीग के स्वयंसेवकों को हाथों में लंबे डंडे लिए हुए देखा। gopal patha
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जब हिंदुओं के मारे जाने की खबर उसके पास पहुंची, तो उसने अपने आदमियों को इकट्ठा किया और उन्हें जवाबी कार्रवाई करने का आदेश दिया, उन्होंने स्पष्ट रूप से निर्देश दिया कि एक हत्या के लिए, उन्हें दस हत्याएं करके बदला लेना है |बाहिनी के स्वयंसेवकों ने खुद को चाकू, तलवार, क्लीवर, लाठी और रॉड से अपने आप को हथियारबंद किया और हिन्दुओं की रक्षा के लिए आगे बड़े । गोपाल के पास कुछ ग्रेनेड और दो अमेरिकी निर्मित 0.45 बोर पिस्तौल थे। गोपाल के इस आक्रमण के कारण मुस्लिम लीग ने अपने हाथ खड़े कर दिए और गोपाल पट्ठा से शांति की अपील कर डाली | gopal patha
गांधी के सामने आत्मसमर्पण करने से इनकार
1947 में गाँधी कोलकाता में आये | उन्होंने ने हिन्दुओं से मुसलमानों के प्रति भेदभाव खत्म करने के लिए कहा और अपने हथियार भी डालने के लिए अपील की | गाँधी ने दो बार ऐसी ही अपील गोपाल को भी की लेकिन वह नहीं माना | फिर उसके बाद कांग्रेस के कुछ नेताओं ने गोपाल को अपने हथियार गाँधी के पैरों में डालने को कहा लेकिन वह फिर भी नहीं माना | अंत में गाँधी के सचिव ने उससे इसका कारण पूछा तो गोपाल ने बताया कि हिन्दुओं के सम्मान की रक्षा के लिए उठाई गई एक कील भी मैं गाँधी के पैरों में नहीं रखूँगा |
Reference : wikipedia