पंचशील का सिद्धांत
पंचशील बौद्ध धर्म की मूल आचार संहिता है जिसको बोध उपासको के लिए पालन करना आवश्यक माना जाता है।
- हिंसा ना करना
- चोरी ना करना
- व्यभिचार ना करना
- झूठ ना बोलो
- नशा ना करना
इन पांच सिद्धांतों को पंचशील के सिद्धांत कहा जाता है। गौतम बुद्ध कहते हैं कि हर आदमी के लिए यह आवश्यक है कि वह इन 5 शिलों को स्वीकार करें | हर आदमी के लिए जीवन का कोई मापदंड होना चाहिए जिससे वह अपनी अच्छाई बुराई को माफ सके मेरे धर्म के अनुसार यह पांच सील जीवन की अच्छाई बुराई मापने के मापदंड की है।
The gilded “Emaciated Buddha statue” in an Ubosoth in Bangkok representing the stage of his asceticism
अष्टांगिक मार्ग के सिद्धांत
गौतम बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग के सिद्धांत को कल्याणकारी राज्य के लिए प्रथम और प्रधान माना है | अष्टांगिक मार्ग कहता है कि जीवन इस मार्ग का अनुसरण करना चाहिए। गौतम बुद्ध कहते हैं कि जब चारों ओर अंधकार और निराशा का वातावरण हो तो आदमी को स्वयं को आदर्श मानकर संकल्प बल और इच्छा शक्ति को जागृत कर क्रियाशील बनना चाहिए ऐसा करने में
- सम्यक दृष्टि
- सम्यक संकल्प
- सम्यक वाणी
- सम्यक कर्म
- सम्यक जीविका
- सम्यक व्यायाम
- सम्यक स्मृति
- सम्यक समाधि
का मार्ग उत्तम है। समय की दृष्टि का अंतिम उद्देश्य अज्ञानता का विनाश करना है| सम्यक वाणी का मतलब सत्य बोला और झूठ ना बोलना सार्थक और समर्थ बातें करना सम्यक का कर्म का मतलब हानिकारक कर्मण करना , अपना कर्म करते समय दूसरों की भावनाओं और अधिकारों का ध्यान रखना | सम्यक जीविका का मतलब कोई भी हानिकारक कार्य करके जीविका न कमाना जिससे समाज पर दुष्प्रभाव पड़े| सम्यक व्यायाम का मतलब अपने आप को सुधारने की कोशिश करना | सम्यक स्मृति का अर्थ ध्यान से देखने की मानसिक योग्यता पाने की कोशिश करना, मन पर नियंत्रण करना, हर बात पर ध्यान देना। हर बात को ध्यान से सुना | सम्यक समाधि का अर्थ निरंतर एकाग्रता और अहंकार का खोना और हमेशा दूसरों की भलाई के बारे में सोचना।
The Lumbini pillar contains an inscription stating that this is the Buddha’s birthplace
पारिवारिक व्यक्ति के लिए बुद्ध ने सद्गुणों का मार्ग समझाया है। उन्होंने बताया है कि शील के पथ का पथिक होने का मतलब है इन सद्गुणों का अभ्यास करना शील , दान , नैष्कर्म , प्रज्ञा, वीर्य , शांति, सत्य,अधिष्ठान. मैत्री और उपेक्षा। जब कोई व्यक्ति दान को आरंभ करता हुआ उपेक्षा की पूर्ति तक पहुंचता है सब को पूरा करने के लिए बुद्ध बन जाता है।
- बौद्ध धर्म में दान का अर्थ उदारता पूर्ण दान देना है और त्याग को भी दान माना जाता है वह धर्म में भोजन दान वस्त्र दान वर नेत्रदान की प्रथा है।
- प्रज्ञा का अर्थ होता है जानना , सत्य का ज्ञान, जैसी वस्तु है उसे उसी प्रकार देखना प्रज्ञा होती है।
- आधुनिक भाषा में वैज्ञानिक दृष्टि व तर्क पर आधारित ज्ञान होता है वह धर्म में प्रज्ञा शील समाधि के बुद्धत्व की प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण माध्यम होते हैं
- वीर्य का अर्थ होता है आलस्य त्याग कर भीतरी शक्तियों को पूरी तरह जागृत करके लोक कल्याण , अध्यात्म साधना में धर्म के मार्ग में अधिक से अधिक चलना।
- शांति का अर्थ है सहनशीलता , सुख दुःख सबको एक समान समझ कर आगे बड़ना
- सत्य की स्वीकृति ,जैसी वस्तु है उसे वैसा ही देखना वैसा कहना
- अधिष्ठान का अर्थ है दृढ़ संकल्प शुभ विनती कर्मों के संपादन में अधिष्ठान परम आवश्यक होता है।
- मैत्री इसका अर्थ है उदारता व करुणा, सभी प्राणियों जीवो व पेड़ पौधों के प्रति मैत्री भाव रखना।
- उपेक्षा पारमिता अर्थ है पक्षपात रहित होकर बुद्धत्व की ओर आगे बढ़ना व्यक्तिगत पवित्रता के बिना जनकल्याण नहीं हो सकता।
पवित्र स्थान –
बौद्ध धर्म में चार स्थान अत्यंत पवित्र माने जाते हैं –
- पहला स्थान कपिलवस्तु, जहाँ बुद्ध का जन्म हुआ
- दूसरा – बौद्ध गया, जहाँ बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ
- तीसरा -सारनाथ, जहाँ बुद्ध ने पहला प्रवचन दिया और
- चौथा स्थान – कुशीनगर,जहाँ उन्होंने शरीर त्याग दिया