जब मेरे पिता जी दादा जी के बारे में बताया करते थे तो मेरा बाल मन कराह उठता था कि आखिर क्या कसूर था उन सैकड़ों लोगों का जिनको जलियांवाला बाग़ में जनरल डायर द्वारा गोलियों से मार दिया गया ।
जलियांवाला बाग़ , शहीदी स्मारक
हमारा पुराना घर जलियांवाला बाग़ से लगभग 500 गज की दूरी पर था , 13 अप्रैल 191 9 को दो ढाई सौ लोग उनके घर में एकत्रित हुए। लोग नारेबाजी करते हुए जलियांवाला बाग़ पहुंचे | बाग में एक मंच बनाया हुआ था जिस पर कई वक्ता लोगों को संबोधित कर रहे थे , शाम करीब 3:30 बजे जनरल डायर हथियारबंद सैनिकों के साथ आ पहुंचा। एक वकील होने के नाते मेरे दादाजी अमर शहीद श्री हरिराम स्टेज से उतरकर
बाग़ में गोलियों के निशान
जनरल डायर के पास पहुंचे और डायर से इस प्रकार आने का कारण पूछा तो उसके एक सिपाही ने उनके सीने में दो गोलियां उतार दी और वे शहीद हो गए | मरते-मरते मेरे दादाजी ने कहा “मेरी जान रहे या ना रहे परंतु मेरा देश जरुर आज़ाद होगा” | उसके बाद जनरल डायर ने जलियांवाला बाग़ में रोल्ट एक्ट के विरोध में इक्कठे हुए सैकड़ों भारतीयों को शहीद कर दिया। उनके स्वर्गवास के बाद बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक दादाजी के मित्र श्री मदन मोहन मालवीय जी उनके घर परिवार वालों को सांत्वना भी देने आये थे | परिवार का सारा भार मेरी दादी जी पर आ गया तब कुछ लोग उनकी दादी जी को आर्थिक सहायता देने आए तो उन्होंने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि वह अपने पति की शहादत का मूल्य नहीं ले सकती।
शहीदी कुआँ