Essence of Vedas in India:
1 – वेदों में बताए नागरिकों के राष्ट्रीय कर्तव्य
वयं राष्ट्रे जागृताम पुरोहिताः । – यजुर्वेद : 9.23
अर्थ : हम राष्ट्र के बुद्धिमान् नागरिक अपने राष्ट्र में सर्वहितकारी होकर अपनी सद्प्रवृत्तियों के द्वारा निरन्तर आलस्य छोड़कर जागरूक रहें ।
2-इन वेदों में मातृभूमि और राष्ट्र के प्रति मनुष्यों के कर्तव्यों का भी अति उत्तम प्रतिपादन किया गया है।
जैसे कि – उप सर्प मातरं भूमिमेताम् । (ऋग्वेद : 10.18.10)
अर्थ : हे मनुष्य ! तू इस मातृभूमि की सेवा कर ।
नमो मात्रे पृथिव्यै नमो मात्रे पृथिव्यै । (यजुर्वेद : 9.22)
अर्थ : मातृभूमि को हमारा नमस्कार हो, हमारा बार-बार नमस्कार हो। Essence of Vedas in India:
3- अथर्ववेद का 12वां सम्पूर्ण काण्ड ही राष्ट्रीय कर्तव्यों का द्योतक है,
जिसमें कहा है – माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्याः । (अथर्ववेद : 12.1.12)
अर्थ : प्रत्येक व्यक्ति को सदा यह भावना अपने मन में रखनी चाहिए कि – यह भूमि हमारी माता है और हम उसके पुत्र हैं ।
4 – आगे इस सूक्त में प्रार्थना की गई है कि
ये ग्रामा यदरण्यं या: सभा अधि भूम्याम् । ये संग्रामा: समितयस्तेषु चारु वदेम ते ।। (अथर्ववेद : 12.1.56)
अर्थ : हे मातृभूमि ! जो तेरे ग्राम हैं, जो जंगल हैं, जो सभा – समिति (कौन्सिल, पार्लियामेन्ट आदि) अथवा संग्राम-स्थल हैं, हम उन में से किसी भी स्थान पर क्यों न हो सदा तेरे विषय में उत्तम ही विचार तथा भाषण आदि करें – तेरे हित का विचार हमारे मन में सदा बना रहे । Essence of Vedas in India
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5- मातृभूमि के लिए प्राणों तक की बलि देने को उद्यत रहना चाहिए।
अथर्ववेद (12.1.62) में कहा है – उपस्थास्ते अनमीवा अयक्ष्मा अस्मभ्यं सन्तु पृथिवि प्रसूता:। दीर्घं न आयु: प्रतिबुध्यमाना वयं तुभ्यं बलिहृत: स्याम ॥
अर्थ : हे मातृभूमि ! हम सर्व रोग-रहित और स्वस्थ होकर तेरी सेवा में सदा उपस्थित रहें । तेरे अन्दर उत्पन्न और तैयार किए हुए – स्वदेशी पदार्थ ही हमारे उपयोग में सदा आते रहें । हमारी आयु दीर्घ हो । हम ज्ञान-सम्पन्न होकर – आवश्यकता पड़ने पर तेरे लिए प्राणों तक की बलि को लाने वाले हों । Essence of Vedas in India
6- जहाँ ईश्वर से वैयक्तिक, पारिवारिक और सामाजिक कल्याण के लिए प्रार्थना की जाती है वहाँ प्रत्येक देशभक्त को यह भी प्रार्थना प्रतिदिन करनी चाहिए और इसके लिए प्रयत्न करना चाहिए कि
स नो रास्व राष्ट्रमिन्द्रजूतं तस्य ते रातौ यशस: स्याम । (अथर्ववेद : 6.39.2)
अर्थ : हे ईश्वर ! आप हमें परम ऐश्वर्य सम्पन्न राष्ट्र को प्रदान करें । हम आपके शुभ-दान में सदा यशस्वी होकर रहें ।
7- राष्ट्र की उन्नति किन गुणों के धारण करने से हो सकती है, इस बात को वेद निम्नलिखित शब्दों द्वारा बताते हैं कि
– सत्यं बृहद्दतमुग्रं दीक्षा तपो ब्रह्म यज्ञ: पृथिवीं धारयन्ति । (अथर्ववेद : 12.1.1)
अर्थ : सत्य, विस्तृत अथवा विशाल ज्ञान, क्षात्र-बल, ब्रह्मचर्य आदि व्रत, सुख-दु:ख, सर्दी-गर्मी, मान-अपमान आदि द्वन्द्वों को सहन करना, धन और अन्न, स्वार्थ-त्याग, सेवा और परोपकार की भावना ये गुण हैं जो पृथ्वी को धारण करने वाले हैं । इन सब भावनाओं को एक शब्द ‘धर्म’ के द्वारा धारित की जाती हैं ।
8 – इनके अतिरिक्त उत्तम भाषा, संस्कृति और भूमि – इन तीनों को इड़ा, सरस्वती और मही नाम से पुकारते हुए वेद इन को हृदय में सदा स्थान देने का उपदेश करते हैं, Essence of Vedas in India
जैसे कि – इळा सरस्वती मही तिस्रो देवीर्मयोभुव:। बर्हिः सीदन्त्वस्रिधः । (ऋग्वेद : 1.13.9)
इस मन्त्र में उन्हें कल्याणकारिणी देवी बताते हुए यह प्रार्थना है कि वे हमारे हृदय में सदा विराजमान रहें । इस प्रकार यह स्पष्ट है कि वेदों में राष्ट्र की सर्वतोमुखी उन्नति में सहायक सभी कर्तव्यों का उत्कृष्ट वर्णन पाया जाता है।