अंग्रेजों को झाँसा देकर बनवाए मोटर-लाइसेंस Chander Shekhar Azad
चंद्रशेखर झाँसी में ही हरिशंकर मोटर ड्राईवर बनकर यातायात पुलिस अधीक्षक के सामने गाड़ी चलाने का टेस्ट दे कर मोटर-लाइसेंस प्राप्त किये।आज़ाद की विशेषता थी कि खोजती पुलिस के साथ रह कर भी वह कभी पकड़े नहीं गये और कठिन परिस्थितियों में भी काम कर ते रहे।
हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ की स्थापना
चौरी-चौरा कांड के कारण असहयोग आंदोलन के स्थगित होने के बाद बनारस में क्रान्तिकारी दल पुन: संगठित और सक्रिय हुआ तो मन्मथ नाथ गुप्ता के संपर्क से शचीन्द्र नाथ सान्याल द्वारा स्थापित क्रांतिकारी दल हिन्दुस्तान प्रजातंत्र संघ में चंद्रशेखर शामिल हो गये।अक्टूबर,1924 में हिन्दुस्तान प्रजातंत्र संघ की स्थापना कानपूर में हुई थी। जुलाई, 1928 में विभिन्न दलों को मिलाकर क्रांतिकारियों का एक अखिल भारतीय संगठन बनाने का विचार क्रांतिकारियों के मन में आया।चंद्रशेखर के नेतृत्व में पंजाब,संयुक्त प्रांत, बिहार,राजस्थान और बंगाल के प्रतिनिधियों की बैठक 08 व 09 सितम्बर, 1928 को दिल्ली (फिरोज शाह कोटला मैदान)में गुप्त बैठक आयोजित की गई।चंद्रशेखर इस बैठक में सुरक्षा को देखते हुए शामिल नहीं हो सके थे। बैठक में चर्चा-विमर्श के बाद हिन्दुस्तान प्रजातंत्र संघ का नाम परिवर्तित करते हुए हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ गठित हुआ।चंद्रशेखर सारे दल के अध्यक्ष होने के साथ-साथ सेना विभाग के नेता भी चुने गये थे।
Source : Veer Savarkar Biography
साण्डर्स वध और लाजपत राय का बदला
लाहौर में साईमन कमीशन का विरोध कर रहे क्रांतिकारी लाला लाजपत राय पर 20अक्टूबर,1928 को अंग्रेज पुलि स ने बर्बर तासे लाठियाँ बर साई। 17 नवम्बर, 1928 को लाला लाजपत की मृत्यु हुई। ‘खून का बदला खून से’ इस संकल्प के साथ चंद्रशेखर ने साण्डर्स के वध की योजना बनाई। राजगुरू और भगत सिंह ने 17 दिसम्बर, 1928 को लाहौर में ही पुलिस चौकी से निकलते समय साण्डर्स को गोली मार दी। साण्डर्स का अंग रक्षक चानन सिंह ने भगत सिंह, राजगुरू का पीछा किया, जिस को गोली मार कर चंद्रशेखर ने ढेर कर दिया।इस तरह लाजपतराय का बदला क्रांतिकारियों ने ले ली।
लार्ड इरविन को बम से उड़ाने को कोशिश, गांधी की प्रतिक्रिया और चंद्रशेखर का जवाब
कांग्रेस व महात्मा गांधी के ढुल-मूल रवैये से हताश क्रांतिकारियों ने लार्ड इरविन को बम से उड़ाने की योजना बनाई थी। 23 दिसम्बर, 1929 को बम से उड़ाने की कोशिश असफल सिद्ध हुई। इस वारदात के बाद गांधी ने क्रांतिकारियों की कड़ी आलोचना की। गांधी ने अपने यंग इंडिया पत्रिका में ‘कल्ट ऑफ द बॅम्ब’ शीर्षक से लेख में क्रांतिकारियों को आत्मबल-हीन, कायर, हत्यारा आदि संबोधित किया। कांग्रेस ने प्रस्ताव पारित करके क्रांतिकारियों की निंदा की। क्रांतिकारियों की स्थिति यह थी कि वे मंच साझा नहीं कर सकते थे और उन्हें गांधी के आरोपों का जवाब भी देना था। चंद्रशेखर के कहने पर भगवती चरण ने ‘फिलासफी ऑफ द बॅम्ब’ शीर्षक से लेख लिखा औरपर्चे पर छपवाकर 26 जनवरी, 1930 को पूरे देश में वितरण कराया गया। क्रांतिकारियों के इस लेख को पूरे देश ने सराहा था।
महानायक का बलिदान Chander Shekhar Azad
27 फरवरी, 1931 को महानायक आज़ाद अपने क्रांतिकारी साथी सुखदेव राज के साथ प्रयागराज (इलाहाबाद) के अल्फ्रेडपार्क में आंदोलन की योजना बनाने के लिये उपस्थित थे, तभी अंग्रेज पुलिस ने उन्हें घेर लिया।परिस्थिति देख उन्होंने वहाँ से सुखदेव को भेज दिया और अकेले अंग्रेज सिपाहियों के विरुद्ध मोर्चा संभाल लिये।उन्होंने संकल्प लिया था कि आजाद जिएंगे,अंग्रेजों के हाथ नहीं आएंगे।जिसका उन्होंने पालन करते हुए देश के लिए अपना बलिदान दे दिया।अंग्रेज पुलिस उन्हें हाथ लगाती, इसके पहले उन्होंने अपनी प्रिय ‘बम तुल बुखारा’ पिस्तौल से स्वयं को गोली मार ली और मातृभूमि को स्वतंत्र कराने वाले लाखों बलिदानियों की सूची में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज करा गये।उनकी वीर गाथा देशवासियों के लिये प्रेरणा का स्रोत है।
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