Black Truth of Mother Teresa : अब मैं एक ऐसा आवरण उठाने जा रहा हूँ जिसे एक लंबे समय से आपकी आँखों पर डाला गया था।
क्राईस्ट के नाम पर वह रोगियों का शारीरिक शोषण करती थी।
मदर टेरेसा को गरीबी और दुर्गति से प्रेम था और वह इसकी तुलना क्रॉस पर जीसस के उत्पीड़न से करती थी। इतना ही नहीं, वह इसे बढ़ावा देती थी और जब रोगी तड़पते तो उन्हें बताती थी कि वे जीसस के करीब हो रहे हैं और प्रभु ऐसा ही चाहते हैं।[1]
उसके ‘छावनियों’ और ‘अस्पतालों’ में आने वाले कई चिकित्सकों और औषध से जुड़े व्यवसायियों के कई पत्र हैं।
चिकित्सकीय सेवा ऐसे स्वयंसेवियों द्वारा चलायी जाती थी जिनका कोई चिकित्सकीय प्रशिक्षण नहीं हुआ था, स्वच्छता अवमानक थी, कुंद होने तक सुई का बारंबार उपयोग किया जाता था, दर्द निवारण का कोई प्रबंध नहीं था और कर्मचारी यह भी पता नहीं कर पाते थे कि कौन सा रोगी मृत्यु के करीब है और किसका रोग ठीक हो सकता है।[2]
चिकित्सकीय सेवा तो दूर की बात है, बीमार लोगों के प्रति सम्मान भी नहीं था।
उसके कोलकाता के एक घर में गुप्त रूप से जाने वाले एक संवाददाता ने वहाँ की परिस्थितियों का वर्णन करते हुए “घटिया” कहा, जहाँ की दीवारों पर उनकी “मदर” के चित्र छोड़कर कुछ नहीं था और जहाँ के सेवक दिनभर बिश्तरों से बंधे होने के बाद खुद को गंदा कर चुके बच्चों पर हंसते थे। इन श्वेतवस्त्रधारी ननों की तथाकथित सेवा में कोई मर्यादा नहीं थी।
उसका विश्वास था कि महिलाओं का उनके शरीर पर अधिकार नहीं होता।
मदर टेरेसा तलाक-विरोधी नियमों की घोर समर्थक थीं और इस कारण उसने तलाक के कानूनों की निंदा करते हुए पूरे विश्व में उड़ान भरी।[3]
महिलाओं के शरीर पर उसकी कट्टर सोच तब स्पष्ट हो गयी जब उसने गर्भपात को ‘प्रेम और शांति’ का ‘सबसे बड़ा विनाशक’ घोषित कर दिया — और इस भाषण के बाद उसकी खड़े होकर सराहना की गयी। वह गर्भनिरोधकों और तलाक के नियमों की बड़ी निंदक थी, और उसने अपना अधिकांश जीवन विभिन्न देशों में महिलाओं के अधिकारों के विरुद्ध बोलते हुए बिताया।
यहां यह जानना बहुत रोचक है कि एक तरफ जहाँ उसने तलाक का हरसंभव विरोध किया और इसे प्रेम और शांति का ‘विनाशक’ कहा, वहीं जब उसके समृद्ध मित्रों – जैसे राजकुमारी डायना की बात आई तो ये सभी मान्यतायें उपेक्षित हो गयीं।
हालांकि वह दावा करती थी कि ये मुद्दे उनके शत्रु हैं जिनकी वह तथाकथित सहायता करने — या मतांतरित करने का प्रयास कर रही थी, किंतु जब ये मुद्दे उसके समृद्ध, सफेद मित्रों, जैसे राजकुमारी डायना से जुड़े होते तो वह आसानी से इनके विरुद्ध हो जाती थी। उसने राजकुमार चार्ल्स से तलाक के बाद डायना को अपना सार्वजनिक समर्थन दिया था।[4]
उसका मुख्य लक्ष्य था लोगों को ईसाईयत में मतांतरित करना।
कई लेख बताते हैं कि कैसे उसने और उसकी साथी सफेद ननों ने लोगों का भावनात्मक दोहन कर और उनकी संस्कृति और परंपरा को असभ्य बताकर बप्तिस्मा करने का प्रयास किया। लोगों की मृत्युशैया पर भी यह उनका बप्तिस्मा किया जाता था।[5]
मदर टेरेसा की सच्चाई-भाग 2 (संस्था में काम करने वाली महिला)
उसके चहुंओर जब लोगों को ईसाईयत में समाया जाता था तो इस काम में बंगाल के सांस्कृतिक और बौद्धिक जीवन की पूर्ण अवहेलना की जाती थी। वह नाममात्र की बंगाली बोलती थी और उसे लोगों के बारे में कुछ पता नहीं था। Black Truth of Mother Teresa
उसके ये संदिग्ध कार्य स्पष्ट हो जाते हैं जब आप को भान होता है कि उसके सबसे बड़े निंदक उसी स्थान से हैं जहाँ उसने वर्षों तक “काम” किया – बंगाल। वह बंगाली मंचों में अनुपस्थित होती है और जो बंगाली उसके सच्ची प्रकृति को जानते हैं उनमें उसके कारण एक व्यग्रता दिखती है।[6]
उसने अपना पूरा जीवन चर्च के लिये पैसे जुटाते हुए बिताया।
सफेद वस्त्रों में सज्जित मदर टेरेसा के पूरे विश्व में समृद्ध और शक्तिशाली लोगों से संबंध थे। ऐसे संबंधों के लिये उस समय के विकसित देशों के राष्ट्रीय नेता भी तरसते थे।
राजकुमारी डायना, क्लिंटन परिवार, पोप जॉन पॉल द्वितीय, हायीति का डुवालियर शासन जैसे वैश्विक नेताओं के साथ उसे आसानी से देखा जाता था। ऐसे कई फोटोग्राफ भी मौजूद हैं। रोगियों के ठीक करने के नाम पर १०० विभिन्न देशों में ५१७ मिशन से जुड़े अस्पताल चलाने के लिये मिलने वाली अकूत धनराशि इन संबंधों का ही परिणाम थी।[7]
मरने से पहले मरीजों का बिना बताये धर्मपरिवर्तन करती थी टेरेसा
उन रोगियों में किसी ने कभी भी चर्च के इस धन को नहीं जाना।[8] उनकी देखभाल के तरीके घटिया थे, वे बेतरतीब रहते थे और दर्द से कराहते हुए मरते थे। और इन सबसे खराब यह था कि दर्द से कराहते रोगियों को मदर टेरेसा कहती कि उन्हें “जीसस का चुंबन” मिल रहा है। किंतु अपनी मृत्युशैया पर मदर टेरेसा को उपलब्ध चिकित्सा में सर्वश्रेष्ठ अपनाने में कोई परेशानी नहीं हुई।
वह चर्च और White Supremacy के पोस्टरों की महिला थी।
मदर टेरेसा को आशा के चिह्न की तरह दर्शाया गया, गरीब भूरे लोगों के लिये एक सफेद उद्धारक। ओटावा विश्वविद्यालय की एक २०१३ की स्टडी ने मदर टेरेसा से जुड़े “परोपकारिता और त्यागशीलता के मिथक” को दूर करते हुए कहा कि उसकी प्रतिष्ठित छवि सत्य के सामने नहीं टिकती है और यह छवि बीमार कैथोलिक चर्च के एक बलवान मीडिया अभियान का परिणाम है।[9]
पिछले ४ दशकों से चर्च विभिन्न मीडिया अभियानों के द्वारा उसकी विरासत को बढ़ाने का भरपूर प्रयास कर रहा है। आज भी विदेशी तीसरी दुनिया के देशों में मौजूद अधिकतर ईसाई प्रचारक लोगों को ईसाई बनाने के लिये, या कहें कि चर्च की २१वीं सदी का उपनिवेश खड़ा करने के लिये उसके नाम का प्रयोग करते हैं। Black Truth of Mother Teresa
मदर टेरेसा की सच्चाई-भाग 1,पैसा होते हुए भी नहीं होता था मरीजों का इलाज़
बहुत संभव है कि यह उत्तर दबा दिया जाए।
अब यह किसी तरह हिंदू-विरोधी नहीं है और ईसाई मिशनरियों की सच्चाई दिखाने का प्रयास करता है, जिसका आधार इस ढोगी महिला ने रखा था। Black Truth of Mother Teresa
कोरा के कई लोकप्रिय लेखक उसकी पूजा करते हैं और स्वयं को उसके बच्चे बुलाते हैं। मैं बस आशा करता हूँ कि चिढ़ कर इसे रिपोर्ट करने की जगह लोग धैर्य से, समय निकाल कर यह समझें कि मदर टेरेसा २०वीं शताब्दी की सबसे बड़ी धोखेबाज है।
चित्र का श्रेय-
This journalist first told the world about Mother Teresa
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