Sant Basweshwar : बसवेश्वर जी के जीवन सम्बन्धी अनेक मत प्रवाह हैं. ‘बसव पुराण’ ‘बसवराज देवर रंगले’ बसवेश्वर जी के जीवन चरित्र के साधन माने जाते हैं. म. बसवेश्वर जी का जन्म इ. स. 1105 ( कुछ लोगों के मतानुसार 1131 ) में अक्षय तृतीया के दिन हुआ. कर्नाटक राज्य के विजापुर जिले का बागेवाड़ी गाँव – उनका जन्म गाँव. आप के पिता ‘मादिराज’ गाँव के प्रमुख अग्रहार थे, माता का नाम ‘मादलांबा’ था. उनका धर्मपरायण और संस्कारी शैव ब्राह्मण कुटुंब को गाँव में विशेष स्थान और सम्मान प्राप्त था. भगवान शिव के उपासक रहे उनके माता – पिता ने भगवान शिव के वाहन रहे वृषभ, नंदी, नंदिकेश्वर इन नामों से उनका नाम ‘बसव’ (वृषभ) रखा. एक और आख्यायिका के अनुसार स्वयं भगवान शिव की आज्ञानुसार, उनके वाहन नंदी ने मादिराज और मादलांबा नाम के शिवभक्तों के घर अवतार लिया. इसलिए बालक का नाम ‘वृषभ’ (संस्कृत), कन्नड़ भाषा में ‘बसव’ रखा गया, ऐसा बसव पुराण कहा गया है.
This is the worlds tallest Basava statue (108 feet) located in Basava Kalyana, Karnataka India. Inaugurated on 28th October 2012.
बसवेश्वर जी आठ साल के हुए तब उनके माता-पिता ने परंपरानुसार उनका उपनयन-व्रतबन्ध (जनेऊ) का संस्कार बड़े ठाठ से करने का निश्चय किया. तब बसवेश्वर जी ने प्रश्न किया कि व्रतबन्ध विधि किसलिए की जाती है ? इस प्रश्न का संतोषजनक उत्तर न मिलने पर उन्होंने यह विधि करने के लिए दृढ़ता से नकार दिया. इतना ही नहीं तो ‘उपनयन संस्कार विधि केवल लड़कों के लिये क्यों, मेरी बहन तथा लड़कियों को क्यों नहीं? ऐसा प्रश्न करके बसवेश्वर जी ने सारे ब्रम्हवृंद को निरुत्तर किया. इस प्रकार बसवेश्वरजी के सुधारवादी दृष्टिकोण तथा स्वतन्त्र वृत्ति का दर्शन सभी को हुआ.माता-पिता के देहांत के पश्चात, बसवेश्वर जी ने अपनी बड़ी बहन नागम्मा के साथ, कृष्णा और मलप्रभा नदियों के संगम स्थित राजा बिज्जल की राजधानी उस समय ‘मंगलवेढा’ (आज के महाराष्ट्र राज्य के सोलापुर जिले का तालुका स्थान) हुआ करती थी. इ.स. 1132 से 1153 तक, लगभग 21 साल बसवेश्वर जी का निवास मंगलवेढा में रहा. ई.स. 1153 में राजा बिज्जल ने अपनी राजधानी मंगलवेढा से कल्याण (बीदर के पास, कर्नाटक) में स्थानांतरित की. इस कारण बसवेश्वर जी को मंगलवेढा छोड़कर कल्याण जाना पड़ा. सन 1153 से 1168 तक कल्याण (आज का ‘बासव कल्याण’ गाँव) ही महात्मा बसवेश्वर का मुख्य कार्यस्थल रहा. यहीं पर उन्होंने ‘अनुभव मंटप’ के नाम से धर्मसंसद की स्थापना की और उसके द्वारा अनेक शिवशरण-शरणियों को एक व्यासपीठ प्राप्त करा दिया.कल्याण में म. बसवेश्वर जी ने शिवशरणों का अंतर-जातीय विवाह करवाने के पश्चात वहाँ पर बड़ा हिंसाचार हुआ जिससे उद्विग्न होकर बसवेश्वर जी ने महा मंत्रिपद का इस्तीफा दिया और वे कल्याण छोड़कर श्रीक्षेत्र कुडलसंगम चले गए. इ.स. 1169 में, नागपंचमी के दिन, संजीवन समाधि लेकर श्री कुडलसंगमेश्वर के चरणों में उनहोने देहार्पण किया.
महात्मा बसवेश्वर जी के समग्र कार्य में आत्मानुभव को विशेष स्थान था. सभी जाति-धर्मों के स्त्री-पुरुषों को खुली है, ऐसी आध्यात्मिक संसद याने अनुभव मंटप. यह बसवेश्वर जी की अभिनव कल्पना थी. बसवेश्वर जी केवल एक तत्त्वचिंतक और विचारक ही नहीं थे बल्कि एक कृतिशील धर्मसुधारक थे. शिवयोगी साक्षात्कारी संत अल्लमप्रभु इस अनुभव मंटप के अध्यक्ष थे. कश्मीर से अफगानिस्तान तक के जगह जगह के शिवभक्त शिवशरण बनकर इस अनुभव मंटप की ओर आकर्षित हुए थे. समाज में प्रचलित जातिभेदों को नष्ट करने का यह बसवेश्वर जी का प्रयोग था. बसवेश्वर जी लिंगायत धर्म के संस्थापक हैं ऐसा गौरव कुछ लोग करते हैं. लेकिन यह वस्तुस्थिति नहीं है. वीरशैव परंपरा अत्यंत प्राचीन है. 27 आगम, 205 उपागम और सिद्धांत शिखामणि जैसे वीरशैव साहित्य बसवेश्वर जी से कई शतक प्राचीन है. म. बसवेश्वर जी ने इस जीर्ण हुई परंपरा को नवसंजीवनी दी. 16 वीं शती के महाराष्ट्र के वीरशैव संत मन्मथस्वामी बसवेश्वर जी के कार्य के गौरव में कहते हैं – अर्थात नष्ट होने वाले वीरशैव धर्म के बसवेश्वर त्राता हैं. म. बसवेश्वर के कार्य का और वचन साहित्य का गौरव समाज के अग्रणी नेताओं ने किया है. बिज्जल दरबार में कर्णिक (क्लर्क) से महामंत्री ऐसा उनके कर्तृत्त्व का आलेख पुरुषार्थ और अभ्युदय का दर्शक है. अभ्यूदय और निःश्रेयस ऐसे दोनों मार्गों का स्वकृति से उपदेश करनेवाले बसवेश्वर जी महामानव थे. उनके कार्य तथा उपदेश को प्रान्त, भाषा और काल की सीमाएं नहीं है. इसके कारण बसवेश्वर विश्वात्मक ऐसे विभूति हैं. सारी मानव जाति के दीपस्तम्भ हैं.Sant Basweshwar Sant Basweshwar Sant Basweshwar