Bhagwan Mahavir : यह बात है 18 वीं सदी के मध्य की उस समय भारत छोटी-छोटी रियासतों में बंटा था। गंभीर नदी के तट पर एक छोटा सा गाँव चंदनपुर था। जहां चतरा नाम का एक चर्मकार रहता था। उसे घर में उसकी पत्नी लक्ष्मी और धोरी नाम की गाय थी । वर हर दिन धोरी गाय को चराने ले जाता था और गाय शाम को अपने दूध से उसके परिवार का पालन पोषण करती।
इसी प्रतिमा पर गाय अपने दूध से करती थी अभिषेक
मगर एक दिन चतरा की गाय ने दूध देना बंद कर दिया। कई दिनों तक जब लगातार गाय ने दूध नहीं दिया तो उसने लक्ष्मी से कहा कि हमें पता लगाना ही होगा कि हमारी गाय का दूध आखिर कौन निकालता है। अगले दिन में गाय के पीछे पीछे ध्यान देने लगे। कुछ समय बाद वे देखते हैं कि गंभीर नदी के तट पर एक छोटा सा टीला है जहां गाय खड़ी होकर अपने चारों थनों से दूध की धारा गिरा रही है। ऐसा लग रहा है जैसे कि गौ माता उस भूमि का अपने दूध से अभिषेक कर रही हो। दूसरे दिन गाय को उसने उस टीले पर जाने से रोकना चाहा पर गाय नहीं रुकी और दूध का झरना भी बंद न हुआ| Bhagwan Mahavir
मन्दिर का दृश्य
चतरा ने अपनी पत्नी से कहा कि उस टीले के नीचे जरुर कोई वस्तु है। दोनों ने मिलकर वहां खुदाई की तो वहां भगवान महावीर की देव प्रतिमा प्रकट हुई। चतरा और उसकी पत्नी ने यह बात गाँव वालों को बताई | एक बार दीवान जोधराज से हिसाब में कुछ गड़बड़ी हो गई और भरतपुर के राजा ने उसे तोप के तीन गोलों से उड़ाने का हुक्म दिया । अपने अंतिम दिन में भगवान महावीर की प्रतिमा प्रकट होने का समाचार मिलते ही वह भगवान के दर्शन के लिए पहुंचे। उन्होंने भगवान से हाथ जोड़कर प्रार्थना की कि निर्दोष होने के बावजूद मुझे मृत्यु दंड दिया जा रहा है। उन्होंने प्रार्थना की कि यदि वे बच गये तो आपके लिए तीन कलश का एक मंदिर बनायेंगे । मृत्युदंड के लिए निश्चित दिन आ गया। दीवान साहब को खंभे से बांधकर पहला गोल दागा गया जो चमत्कारिक रूप से उनकी बाई ओर से निकल गया। दूसरा गोला उनकी दाईं ओर से निकल गया। Bhagwan Mahavir
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अंत में तीसरा गोला जब उनके पर सिर के ऊपर से गुजरा तो वहां दीवान निर्दोष सिद्ध हो गया। वे भगवान महावीर की जय जय कार करने लगे। उन्होंने अपने के बचन के अनुसार 3 कलश वाला एक भव्य मंदिर बनवाया, जिसमें चतरा के हाथों निकली भगवान महावीर की प्रतिमा स्थापित की जानी थी । मूर्ति को मन्दिर में ले जाने के लिए सैंकड़ो बैलगाड़ियों का प्रयोग किया गया लेकिन तब भी मूर्ति टस से मस नहीं हुई। सैकड़ों लोग भी मूर्ति को हिलाने में असफल रहे लेकिन तब चतरा को बुलाया गया | चतरा के स्पर्श करते की मूर्ति को बैलगाड़ी पर मंदिर लाया गया और इस तरह भगवान महावीर उस मंदिर में प्रतिष्ठित हुए जो आज राजस्थान में सवाई माधोपुर से आगे श्री महावीर जी के नाम से जाना जाता है | Bhagwan Mahavir