शीघ्र ही उनके तन पर चोटों और घावों की संख्या इतनी बढ़ गयी थी कि ऐसा लगने लगा मानो
कभी भी उनके प्राण तन को त्याग सकते हैं, परन्तु अपने मनो मस्तिष्क की असीम गहराइयों में समाये
उस विश्वास और शक्ति के चलते वे अपनी अंतिम सांस तक डंटे रहे और जिहादी मुगलों को छठी का दूध याद दिला दिया।
उनका शरीर लहू से लथ पथ और तलवारो और भालो के घावों से छलनी हो गया था।
कैसे छत्रपति शिवाजी ने स्थापित किया था हिन्दू राष्ट्र
वे डटे रहे तब तक जब तक उन्होंने उन तीन तोपो के दागे जाने की ध्वनि नहीं सुन ली जो शिवाजी के
विशालगढ़ किले सुरक्षित पहुँच जाने के चिन्ह के रूप में पूर्व निर्धारित किया गया था।
उधर शिवाजी महाराज की सेना को भी विशालगढ़ में पहले से मौजूद एक और मुग़ल सरदार,
सुर्वे की सेना का सामना करना पड़ा। उन से जूझते हुए लगभग सुबह ही हो चली थी और सूर्योदय तक
आखिरकार शिवाजी ने उन तीन तोपों को दाग दिया जो बाजी प्रभु को एक इशारा थी,
बाजी प्रभु यद्यपि तब तक जीवित तो थे परन्तु लगभग मरणासीन हो चुके थे।Baji Prabhu Deshpande
उनके सभी साथी सैनिक हर हर महादेव का उद्घोष करते हुए बाजी को उठा कर दर्रे के पार पहुँच गए।
परन्तु तभी, एक वीर की भांति विजयी मुस्कान के साथ बाजी ने अपनी अंतिम सांस ली और परमात्मा में लीन हो गए।
समाचार सुनकर शिवाजी महाराज का ह्रदय भर आया।
बाजी प्रभु को एक भाव भीनी श्रद्धांजलि देते हुए उन्होंने घोर कीन्द् दर्रे का नाम पावन कीन्द् रखा जो
दर्शाता था कि बाजी प्रभु के लहू से वह पावन हो चुका था। भविष्य में शिवाजी ने बाजी के बच्चो की देख रेख तक करी ।
आज के युग में जब हम अपनी मातृभूमि में जन्मे असंख्य गुमनाम शेरो को भुला चुके हैं,
वीर बाजी प्रभु देशपांडे के सर्वोपरि बलिदान की कल्पना से रूह काँप उठती है और उनके प्रति ह्रदय भाव उमड़ पड़ता है।Baji Prabhu Deshpande