भारत की भूमि ने कई महान योद्धा दिए है जिन्होंने आपने प्राणो की आहुति डाल कर भारत माता को बचाया है आज ऐसे ही एक योद्धा के वारे में बताने जा रहे है ।
भारत मे मुट्ठी भर लोग होंगे जिन्हे वीर बाजी प्रभु देशपांडे (Baji Prabhu Deshpande) के बारे में पता हो। बता दें कि बाजी प्रभु कुछ ऐसे शूरवीरो में से एक हैं जिनके शौर्य ने भारतवर्ष को एक सशक्त स्वतन्त्र स्तर प्रदान करने के साथ ही स्वयं शौर्य की ही परिभाषा बदल कर रख दी थी, मगर हमारे ढीले ढाले प्रशासनिक तंत्र व् इतिहासकारों के षड्यंत्र के चलते गुमनामी के अँधेरे में खो गये। Baji Prabhu Deshpande

Baji Prabhu Deshpande in Hindi
बाजी प्रभु एक ऐसा नाम है जिनके जीवन विवरण में और गहराई से विश्लेषण करने पर ही हम उनके
व्यक्तित्व के सबसे विस्थापित पहलुओं को पहचान पाते हैं। बाजी प्रभु का जन्म चंद्रसेनीय कायस्थ
प्रभु वंश के एक परिवार में वर्त्तमान पुणे क्षेत्र के भोर तालुक में मावळ प्रांत में हुआ था।
बाल्यकाल से ही उनके ह्रदय में भारतववर्ष से बाहरी मुग़ल हमलावरों को नेस्तनाबूत कर
बाहर का रास्ता दिखा देने का जज़्बा था और शिवाजी की सेना में एक अभिन्न हिस्सा बनकर
कार्य करना उनके इसी स्वप्न को वास्तविकता में बदलने वाला था। यही नहीं, स्वयं शिवाजी ने भी बाजी प्रभु के साहस और सूज बूझ को देखते हुए उन्हें अपनी सेना के दक्षिणी कमान को सौंपा जो कि आधुनिक कोल्हापुर के इर्द गिर्द उपस्थित था। बाजी प्रभु ने आदिलशाही नमक राजा के सेनापति अफज़ल खान को शिकस्त देने में एक अत्यंत ही अहम भूमिका अदा करी थी।
हुआ कुछ यूँ की छत्रपति शिवाजी अफज़ल खान से अपने होने वाले द्वंद्व युद्ध के अभ्यास के लिए एक अति बलवान और अफज़ल जितने ही लम्बे चौड़े प्रतिद्वंदी को ढून्ढ रहे थे और यहीं पर बाजी प्रभु अपने साथ, सूरमा मराठा योद्धाओ की एक खेप लेकर आये, जिनमें विसजी मुरामबाक भी था जो अपनी कद काठी में
अफज़ल खान जितना ही विशालकाय था। Baji Prabhu Deshpande
शिवाजी और बाजी प्रभु जी का नेतृत्व
बस फिर क्या था, शिवाजी और बाजी प्रभु के नेतृत्व में मराठा सेनाओ ने अपनी कूटनीतिक और सामरिक चातुर्य से
अफज़ल खान को मृत्यु और इस प्रबल जोड़ी ने आदिल शाह की अति विशाल सेनाओ तक के नाक में दम कर दिया।
वस्तुतः, मराठा सेनाएं अपनी छापामार और घात लगाकर वार करने की क्षमता के कारण युद्धभूमि में
इस्लामी हमलावरों के खिलाफ बेहद ही सफल रहे। उन दिनों शिवाजी ने अपनी सेना को पन्हाला किले के इर्द गिर्द
इकठ्ठा कर लिया था। आदिल शाह को किसी तरह खबर मिल गई, उसने तुरंत अपनी एक विशाल
सेना के द्वारा पन्हाला किले के समीप एक तीव्र हमला बोल दिया।
हमला इतना भीषण था की मराठा सेनाओ को भारी नुकसानों का सामना करना पड़ा।
वहां से निकालकर बचना शिवाजी के लिए अति महत्वपूर्ण हो गया था।
युद्ध बहुत समय तक चलता रहा। आदिल शाह का चतुर एवम् सूझ बुझ वाला सेनापति सिद्दी जोहर
अपनी जेहादी सेनाओ के द्वारा खूब कहर बरपा रहा था। और उससे काफी सफलता भी हासिल हुई
जब उसने मराठा सेनाओ का राशन और संपत्ति को नष्ट कर दिया। Baji Prabhu Deshpande
सेनापति नेताजी पालकर ने भी हरसंभव प्रयास
हमले को नाकाम करने के सभी उपाय विफल हुए जा रहे थे। शिवाजी के कुशल सेनापति नेताजी पालकर ने भी हरसंभव प्रयास किया।
अंततः शिवाजी ने एक अति गोपनीय विकल्प चुना। उन्होंने अपने एक वकील को सिद्दी जोहर के पास
इस करार को लेकर भेजा की हम एक ससमझौता करने के लिए तैयार हैं। यह सुनते ही आदिल शाह की सेनाओं ने
कुछ हल्का रुख किया और महीनो से चल रहे संग्राम में एक अल्प विराम तो लग ही गया।
और यही वह ऐतिहासिक पल था जब बाजी प्रभु ने अपने ऊपर मुगलो को धुल चटाने की ज़िम्मेदारी ली।
उन्होंने अपने साथ कुछ 300 मराठा सैनिको को लिया और शिवाजी महाराज से आगे बढ़ने के लिए कहा।
इस प्रकार वे मुग़लों से लड़कर शिवाजी और उनकी बची हुई सेना को सकुशल विशालगढ़ किले तक पहुचने में मददगार रहे।
शिवाजी यह सुनकर, बाजी प्रभु की वीरता से स्तब्ध रह गए और अनमने भाव से अपनी सेना के साथ
विशालगढ़ की ओर चल दिए। और फिर घोड कीन्द् में मराठा सूरमाओं ने अपने जौहर का वह सैलाब बरपाया
जिसका इतिहास ही साक्षी है। Baji Prabhu Deshpande
रण भूमि कि गाथा
हर हर महादेव की प्रचंड हुंकारों के साथ ही मराठा सेना भूखे शेरो की तरह मुगलों पर टूट पड़ी।
बाजी प्रभु की सेना की संख्या बहुत ही अल्प थी ; यूँ कहिये की मुग़ल सेना का सिर्फ एक सौवां हिस्सा।
हर तरफ भीषण नरसंहार का मंज़र फ़ैल चूका था। जिहादी अपने आक्रमणों में बर्बरता का उपयोग करे जा रहे थे।
पर बाजी प्रभु उस वीरता की परम गाथा का नाम है जो क्षत्रु की राह में एक भीमकाय चट्टान की तरह खड़े रहे।
उन्होंने दोनों हाथों में एक तलवार ली और वे बस अपनी पूर्ण शक्ति से मुग़लों को मौत के घाट उतारते रहे।