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1857 स्वतंत्रता संग्राम के तथ्य – 1857 Independence movement

  • 1857 Independence movement Facts  : बहुत से लोगों का कहना है कि 1857 का स्वतंत्रता समर केवल राजनितिक विद्रोह था और इसकी शुरुआत केवल गौ मांस और सूअर के कारतूसो के कारण किया गया था लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है भारत के लोगों में स्वतंत्रता प्राप्ति की इच्छा तो थी ही 1857 Independence movement facts
  • लेकिन  इन घटनाओं ने अग्नि में घी का कार्य किया और एक महान प्रयास शुरू हुआ | आइये जानते है इस महान स्वतंत्रता समर के कुछ रोचक तथ्य :1857 Independence movement facts

1857 के तथ्य – प्रो. कपिल कुमार की जुबानी

(वरिष्ठ चिंतक और इतिहासकार, वर्तमान में इंदिरा गांधी ओपन यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर)

  • 1770 से लेकर 1857 तक पूरे देश के रिकॉर्ड में अंग्रेजों के खिलाफ 235 विद्रोह हुए, जिनका परिपक्व रूप हमें 1857 में दिखाई देता है। 1770 में बंगाल का संन्यासी आन्दोलन, जहां से वंदे मातरम निकल कर आया। 150 संन्यासियों को अंग्रेजों की सेना गोली मार देती है। जहां से मोहन गिरी, देवी चौधरानी, धीरज नारायण, किसान, संन्यासी, कुछ फकीर, ये सभी मिलकर विद्रोह में खड़े हुए जिन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम किया था और इसी विद्रोह को दबाने में अंग्रेजों को तीस वर्ष लग गये। जहां से भारतीय राष्ट्रवाद की सबसे बड़ी नींव पड़ी, 1857 से पहले किसानों, जन जातियों तथा आम लोगों का अंग्रेजों के खिलाफ बहुत बड़ा विद्रोह रहा है।

  • हमारे देश की वीरांगनाओं का इसमें बड़ा योगदान था, उस दौरान पचास-पचास महिलाओं को अंग्रेजों ने फांसी पर लटकाया है , पेड़ों से रस्सी बांध कर। आज भी बागपत और इन इलाकों के गाँव के अंदर उन पेड़ों को लोगों के द्वारा पूजा जाता है। 1857 की क्रान्ति और उस बाद की घटनाओं में इस आंदोलन में महिलाओं ने कई बार अंग्रेजों के दांत खट्टे किए हैं। मेरठ, मुज्फ्फरनगर, शामली इन तमाम जगहों पर ऐसे नाम मिलते हैं। अच्छी बात इसमें यह है कि इसमें गुर्जर, जाट, ब्राह्मण, दलित भाई बहनें और मुस्लिम समुदाय के भी हैं, इसमें ऐसी भी महिलाऐं हैं जिन्होंने झुंड बनाकर अंग्रेजों के खिलाफ काम किया और ऐसे कई उदाहरण हैं कि पति मेरठ के बाद दिल्ली लड़ाई लड़ने चला गया और फिर उनकी महिलाओं ने मेरठ में मोर्चा संभाला। इसमें अवंतीबाई का नाम आता है । यहां तक कि मध्य प्रदेश की एक गायिका का नाम भी सामने आता है जो अंग्रेजों के बीच छावनी में जाती थी तो नाच करने के दौरान अपने सैनिकों को पुड़िया में संदेश पहुंचाया करती थी। मोतीबाई, झलकारीबाई, झांसी का रानी का नाम प्रमुखता से आता है। यहां महिलाओं की जो सेना थी जो कि एक मटके में छत से अंग्रेजी सैनिकों के ऊपर गर्म तेल डालती थी। साथ ही अपनी रानी का सुरक्षा घेरा बनाकर उनकी रक्षा करती थी।
  • कमल का फूल, रोटी और पत्र पूरे देश के अंदर घूम रहे थे। अंग्रेज़ खुद लिखते हैं एक एक रात के भीतर ये रोटी 200 से 300 मील तक चली जाती थी । उस समय चौकीदार की बहुत बड़ी भूमिका रही थी क्योंकि एक भी चौकीदार ने अपनी जुबान नहीं खोली कि इस कमल और रोटी घूमने का मतलब क्या है, या पेड़ की छाल छीलने का क्या मतलब है । पेशावर से लेकर बेलगांव तक और डीमापुर से लेकर शिवसागर तक पंचमहल, शोलापुर, देश के कौने-कौने में यह सुनियोजित तरीके से फैल रही थी।
  • अभी हाल ही में पराग टोपे की एक किताब आई है , पराग टोपे तात्या टोपे के खानदान से हैं । बड़ा अच्छा मतलब बताया है उन्होंने एक कमल के फूल में 25 से 30 पंखुड़ियाँ होती है और जो अंग्रेजी प्लाटून होती थी उसमें 25 से 30 सिपाही होते थे ऐसे में लाल रंग के कमल के रूप में भारतीय सैनिकों के लिए संदेश था कि तुमको विद्रोह करना है । रोटी का मतलब था कि ऐसा समय आने वाला है जब तुम्हें खाने पीने की चीजों की किल्लत हो सकती है । देखिये जो हिन्दुस्तानी सिपाही हैं उनको कभी रसद की दिक्कत नहीं हुई । पेड़ की छाल छीलने का मतलब था कि जिस तरह से पेड़ की छाल छीलने पर पेड़ मर जाता है उसी प्रकार से अँग्रेजी हुकूमत हमें खा रही है और हमें इसके खिलाफ खड़े होना है ।1857 Independence movement:
  • अब पत्रों के अंदर पेशावर से लेकर बंगाल तक के सभी पत्रों को ही ले लीजिये, पेशावर से लेकर बंगाल तक क्या कारण है कि पत्रों की गुप्त भाषा एक जैसी है, जिसमें एक जैसे संदेश दिये जा रहे हैं । नाना साहब की चिट्ठियाँ आप देखिये कि जो भाषा है वह एक ही है, 1857 से पहले नाना साहब की चिठ्ठी आप देखिए कि जम्मू के राजा तक को पत्र लिखा कि हमारी मदद करना जिस पर जम्मू के राजा ने हामी भरी है । साफ है यह एक सुनोयोजित तरीके से की गयी क्रांति थी .
  • जेएनयू के हिस्ट्री डिपार्टमेंट में 1857 की क्रान्ति के ऊपर एक भी थेसिस जमा नहीं हुई । अलीगढ़ विश्वविद्यालय और हैदराबाद में भी नहीं हैं, जोकि अपने आप में रिसर्च के गढ़ माने जाते हैं, दिल्ली में एक दो बाद में हो गये वह भी जब कि सरकार ने इसे घोषित किया कि यह स्वतंत्रता संग्राम था
  • जब मैं तात्या टोपे पर संग्राहलय के लिए एक पैनल बना रहा था तो एक वृतांत मिलता है कि 1 जनवरी 1859 को युद्ध के अंदर तात्या टोपे की मृत्यू हो गयी। बताते हैं कि 6 जनवरी को अंतिम संस्कार भी कर दिया गया। फिर एक रिपोर्ट आती है कि 6 अप्रैल को तात्या टोपे को जंगलों से पकड़ लिया गया, उस आदमी पर मुकदमा चलाकर जून के अंदर शिवपुरी में उसको फांसी दे दी जाती है । लेकिन 1864 का एक कागज मिलता है कि जिसमें एक डीएम कहता है कि मैंने 40 हजार सैनिक एकत्र कर लिए हैं और मैं असली तात्या टोपे को पकड़ने जा रहा हूं।1857 Independence movement:
  • इसलिए ना चाहते हुए भी मैं एक प्रश्न खड़ा करता हूं कि क्या वास्तव में झांसी का रानी की मृत्यू हुई थी ग्वालियर में, क्योंकि अंग्रेजों को रानी की मौत की खबर सात दिन बाद लगी थी साथ ही रानी को बचाने में आश्रम के 782 साधुओं ने अपनी जान दी थी। वो कहते हैं कि रानी घायल थी जिसे हमने नाना साहब के पास भेज दिया और तो दूसरी स्त्री थी झलकारी बाई उसका दाह संस्कार किया गया और अंग्रेजों को बताया गया कि झांसी की रानी मर गयी है वह भी एक हफ्ते बाद में, और फिर उसकी अस्थियों को दिखा दिया गया। जिससे लगता है कि झांसी की रानी की मौत नहीं हुई। लेकिन इस पर अभी शोध बाकी है। तो अभी ऐसा बहुत कुछ है जो इतिहास में जानने योग्य है और हमारे यहां के शोध छात्रों को इस पर काम करना चाहिए ।

 

  • यह भ्रम फैलाया गया कि संग्राम केवल उत्तर भारत का था। वास्तव में पूरे भारत ने स्वतन्त्रता की यह लड़ाई लड़ी है। पूरा देश लड़ा सभी वर्ग लड़े. सैनिक, सामंत, किसान, मजदूर, दलित, महिला, बुद्धिजीवी सभी वर्ग लड़े थे।जस्टिस मैकार्थी ने हिस्ट्री ऑफ अवर ओन टाइम्स में लिखा है – ‘वास्तविकता यह है कि हिंदुस्तान के उत्तर एवं उत्तर पश्चिम के सम्पूर्ण भूभाग की जनता द्वारा अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध विद्रोह किया गया था।’
  • 1857 का स्वतन्र्ता संग्राम सत्ता पर बैठे राजाओं और कुछ सैनिकों की सनक मात्र नहीं था। वह प्रयास असफल भले ही हुआ हो पर भविष्य के लिए परिणामकारी रहा। सारी पाशविकता के बावजूद अंग्रेज हिंदुस्थानी जनता की स्वतंत्रता प्राप्ति की इच्छा को दबा नहीं सके थे।
  • अंग्रेजों ने हिंदुस्थानी जनता की स्वतंत्रता प्राप्त करने की तीव्र इच्छा को बुरी तरह से कुचल दिया था, ऐसा कहा जाता है – वास्तविकता यह है कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के संयुक्त प्रयासों की यह शुरुआत थी। अंग्रेजों का जुए को कंधे से उतार फैंकने की जो शुरुआत हुई थी, वह न केवल जारी रही अपितु भविष्य के भारत को व्यापक रूप से प्रभावित किया है।
  • सरदार पणिकर ‘ए सर्वे ऑफ इंडियन हिस्ट्री’ में लिखते हैं -”सबका एक ही और समान उद्देश्य था – ब्रिटिशों को देश से बाहर निकालकर राष्ट्रीय स्वतन्त्रता प्राप्त करना। इस दृष्टि से उसे विद्रोह नहीं कह सकेंगे। वह एक महान राष्ट्रीय उत्थान था।”
  • शिवपुरी छावनी में न्यायाधीश के सामने तात्या टोपे ने कहा -”ब्रिटिशों से संघर्ष के कारण मृत्यु के मुख की ओर जाना पड़ सकता है, यह मैं अच्छी तरह से जानता हूँ। मुझे न किसी न्यायालय की आवश्यकता है न ही मुकदमें में भाग लेना है।”

  • वासुदेव बलवंत फड़के -”हे हिन्दुस्तानवासियो! मैं भी दधीचि के समान मृत्यु को स्वीकार क्यों न करूँ? अपने आत्म समर्पण से आपको गुलामी व दुख से मुक्त करने का प्रयास क्यों न करूं? आप सबको अंतिम प्रणाम करता हूँ।”
  • ‘अमृत बाजार पत्रिका’ ने नवम्बर 1879 में वसुदेव बलवंत फड़के के बारे में लिखा था -”उनमें वे सब महान विभूतियां थी जो संसार में महत्कार्य सिद्धि के लिए भेजी जाती हैं।  वे देवदूत थे। उनके व्यक्त्वि की ऊंचाई सामान्य मानव के मुकाबले सतपुड़ा व हिमालय से तुलना जैसी अनुभव होगी।” 1857 Independence movement:

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1857 स्वतंत्रता संग्राम के स्थान

  • दिल्ली, लखनऊ,इलाहाबाद(प्रयाग),आजमगढ़, फतेहपुर, बनारस(वाराणसी), गोरखपुर, आगरा, मथुरा, कानपुर, सीतापुर, फर्रुखाबाद,जौनपुर,मैनपुरी, इटावा, एटा, अलीगढ, मेरठ, मुज़फ्फरनगर, बरेली, मुरादाबाद, शाहजहांपुर,बदायूं, सहारनपुर, बिजनौर,अल्मोड़ा, बागेश्वर, चंपावत, नैनीताल, पिथौरागढ़, उधमसिंह नगर, बाँदा, हमीरपुर, झाँसी, जालौन, सागर,खंडवा, खरगौन, बुरहानपुर,बड़वानी, नीमच, उदयपुर,जोधपुर, माउंट आबू, अजमेर, देवास, धार, इंदौर, आगर, झाबुआ, राजगढ़, रतलाम, उज्जैन, गुना, सीहोर, झालावार, कोटा, बांसवाडा, प्रतापगढ़,चित्तौड़गढ़, ग्वालियर,कलकत्ता(कोलकाता), उत्तर24 परगना, पटना,रांची,काँगड़ा, अमृतसर, पेशावर, जालंधर, लुधियाना, होशियारपुर, गुरुदासपुर,रावलपिंडी,सियालकोट, महेंद्रगढ़, अम्बाला,फिरोजपुर,पेशावर, साहिवाल,चटगांव, ढाका, जलपाईगुड़ी, भागलपुर, हजारीबाग, पलामू, सिंहभूम, कोल्हापुर, करांची, बॉम्बे(मुंबई), हैदराबाद,औरनागपुर 

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