क्यों हत्या हुई पूरी के स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती जी की ?

लक्ष्मणानंद सरस्वती (सन १९२४ – २३ अगस्त २००८) ओड़िशा के वनवासी बहुल फूलबाणी (कन्धमाल) जिले में धर्मान्तरीत हुए वनवासियों को पुनः हिन्दू धर्म में संस्कारित करने के लिये प्रसिद्ध थे। अगस्त २००८ में कुछ हथियारबन्द लोगों ने उनकी हत्या कर दी।

लक्ष्मणानंद सरस्वती जी की जीवनी

ओड़िशा के वनवासी बहुल फूलबाणी (कन्धमाल) जिलेके के गांव गुरुजंग में 1924 में जन्मे, जो बचपन से ही दु:खी-पीड़ितों की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर देने का संकल्प मन में पालते रहे। गृहस्थ और दो संतानों के पिता होने पर भी अंतत: एक दिन उन्होंने अपने संकल्प को पूरा करने के उद्देश्य से साधना के लिए हिमालय की राह पकड़ ली। 1965 में वे वापस लौटे और गोरक्षा आंदोलन से जुड़ गए।

Relate Post : जूना अखाड़ा के नागा साधु करेंगे महाराष्ट्र सरकार का घेराव

प्रारंभ में उन्होंने वनवासी बहुल फूलबाणी (कन्धमाल) जिले के गांव चकापाद को अपनी कर्मस्थली बनाया।* *कुछ ही वर्षों में वनवासी क्षेत्रों में उनके सेवा कार्य गूंजने लगे, उन्होंने वनवासी कन्याओं के लिए आश्रम- छात्रावास, चिकित्सालय जैसी सुविधाएं कई स्थानों पर खड़ी कर दीं और बड़े पैमाने पर समूहिक यज्ञ के कार्यक्रम संपन्न कराए।

उन्होने पूरे जिले के गांवों की पदयात्राएं कीं। वहां मुख्यत: कंध जनजातीय समाज ही है। उन्होने उस समाज के अनेक युवक-युवतियों को साथ जोड़ा और जगह-जगह भ्रमण किया। देखते-देखते सबके सहयोग से चकापाद में एक संस्कृत विद्यालय शुरू हुआ। जनजागरण हेतु पदयात्राएं जारी रहीं।

26 जनवरी 1970 को 25-30 ईसाई तत्वों के एक दल ने उनके ऊपर हमला किया। एक विद्यालय में शरण लेकर उस खतरे को टाला, लेकिन उस दिन उन्होने यह निश्चय कर लिया कि मतांतरण करने वाले तत्वों और उनकी हिंसक प्रवृत्ति को उड़ीसा से खत्म करना ही है।

पिछले लगभग 42 वर्षों से वे इसी क्षेत्र में रहकर वंचितों की सेवा कर रहे थे। उन्होंने चकापाद के वीरूपाक्ष पीठ में अपना आश्रम स्थापित किया। उनकी प्रेरणा से 1984 में कन्धमाल जिले में ही चकापाद से लगभग 50 किलोमीटर दूर जलेसपट्टा नामक घनघोर वनवासी क्षेत्र में कन्या आश्रम, छात्रावास तथा विद्यालय की स्थापना हुई। एक हनुमान मन्दिर के निर्माण का भी संकल्प लिया गया। अब यहां कन्या आश्रम छात्रावास में सैकड़ों बालिकाएं शिक्षा ग्रहण करती हैं। इसी जलेसपट्टा आश्रम में स्वामी लक्ष्मणानंद जी हत्या कर दी गई।

ओड़िशा की लाखों जनता स्वामी लक्ष्मणानंद जी के प्रति अनन्य श्रद्धा रखती है। सैकड़ों गांवों में पदयात्राएं करके लाखों वनवासियों के जीवन में उन्होंने स्वाभिमान का भाव जगाया। सैकड़ों गांवों में उन्होंने श्रीमद्भागवत कथाओं का आयोजन किया। एक हजार से भी अधिक भागवत घर स्थापित किए, जिनमें श्रीमद्भागवत की प्रतिष्ठा की।

1986 में स्वामी जी ने जगन्नाथपुरी में विराजमान भगवान जगन्नाथ स्वामी के विग्रहों को एक विशाल रथ में स्थापित करके उड़ीसा के वनवासी जिलों में लगभग तीन मास तक भ्रमण कराया। इस रथ के माध्यम से लगभग 10 लाख वनवासी नर-नारियों ने जगन्नाथ भगवान के दर्शन किए और श्रद्धापूर्वक पूजा की। इसी रथ के माध्यम से स्वामी जी ने नशाबन्दी, सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध एवं गोरक्षा के लिए जन जागरण किया। इससे वनवासियों में चेतना एवं धर्मनिष्ठा जागृत हुई।

Post : भीड़ द्वारा 2 साधुओं की हत्या के खिलाफ जूना अखाड़ा करेगा महाराष्ट्र को कूच – महंत नरेंद्र गिरी

सन् 1970 से दिसंबर 2007 तक स्वामी जी पर 8 बार जानलेवा हमले किए गए। मगर इन हमलों के बावजूद स्वामी जी का प्रण अटूट था और वह प्रण यही था- मतांतरण रोकना है, जनजातीय अस्मिता जगानी है।

स्वामी जी कहते थे- “वे चाहे जितना प्रयास करें, ईश्वरीय कार्य में बाधा नहीं डाल पाएंगे।”

लक्ष्मणानंद सरस्वती जी की जीवनी निर्मम हत्या का कारन

२३ अगस्त २००८ को जन्माष्टमी समारोह में भगवान् श्रीकृष्ण की आराधना में तल्लीन स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की निर्मम हत्या कर दी गई थी।
उनके साथ चार अन्य साधुओं की भी ह्त्या कर दी गई…

सवाल उठता है कि उनकी ह्त्या क्यों की गई ?…
पूज्य स्वामी लक्ष्मणानंद ने उड़ीसा में धर्मातरण के खिलाफ अभियान छेड़ रखा था। पिछले कई वर्षों से स्वामीजी धर्मांतरित वनवासियों को हिंदू धर्म में वापस लाने का कार्य कर रहे थे। उनकी हत्या से माओवादियों एवं विधर्मिओ की मिलीभगत की ओर भी समाज का ध्यान गया। उनके हत्यारे माओवादी नेता ने यह भी कहा कि उड़ीसा में विधर्मी समुदाय के लोग बड़े पैमाने पर माओवादी समूहों में शामिल हैं, इसलिए स्वाभाविक ही माओवादी भी इनका समर्थन करते है तथा स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती को खत्म करने के लिए विधर्मी समुदाय का दबाव था। हमने पहले लक्ष्मणानंद को विधर्मी मिशनरी विरोधी गतिविधियों से दूर रहने को कहा था यह पूछे जाने पर कि उड़ीसा में माओवादी कैडर व समर्थकों में सबसे अधिक विधर्मी समुदाय के लोग हैं, माओवादी पांडा ने बेहिचक स्वीकार किया कि “यह तथ्य है कि हमारे संगठन में विधर्मी बड़े पैमाने पर हैं। उड़ीसा के रायगढ़, गजपति और कंधमाल में हमारे अधिकांश समर्थक विधर्मी समुदाय के हैं।

याद रखिये !

ये माओवादी न केवल हिंदुओं के, अपितु पूरे भारतवर्ष के दुश्मन हैं तथा देश विरोधी ताकतों के प्रिय सहयोगी |  इन गरीब आदिवासी क्षेत्रों में विधर्मी मिसिनरी का कार्य बाहरी देशों से आये फण्डों से निर्बाध चलता रहा था, लेकिन पूज्य स्वामी लक्ष्मणानन्द जी के प्रयासों से यह न केवल रुका, बल्कि भारी संख्यां में लोगों ने पुनः घर वापसी की। पूज्य स्वामी जी का बलिदान हिन्दू समाज सदैव याद रखेगा | ये वही महात्मा है जिन्होंने उड़ीसा के आदिवासी क्षेत्रों में धर्मांतरण रोकने का जबरदस्त कार्य किया। लेकिन 2008 में मिशनरियों के लोगों ने इनकी हत्या कर दी। इनके ऊपर इससे पहले 7-8 जानलेवा हमले हो चुके थे, लेकिन उस बार (2008 में) विरोधी सफल रहे। यदि 2004 में शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती फ़िर स्वामी लक्ष्मणानंद और फ़िर साध्वी प्रज्ञा सिंह। तो समझदार व्यक्ति यहीं समझ जाएगा कि यह कड़ी इसी बात को बता रही है कि यह सब भारत की सनातन संस्कृति पर एक पूर्व-नियोजित हमला है। जिसमें हमारे ही मूर्ख और स्वार्थी लोगों का उपयोग किया गया। भारत के संस्कृति रक्षक सन्त महात्माओं को बदनाम कर दो या उनकी हत्या कर दो, यही करते आए है मिशनरी। और उनके इस घटिया काम में साथ देते है हमारे मूर्ख राजनेता और मीडिया वाले। नीचे पूरा पढ़ें स्वामी लक्ष्मणानंद जी के विषय में।

Source : Dainik Jagran

आशा है , आप के लिए हमारे लेख ज्ञानवर्धक होंगे , हमारी कलम की ताकत को बल देने के लिए ! कृपया सहयोग करें

Quick Payment Link

error: Copyright © 2020 Saffron Tigers All Rights Reserved